पुलिस द्वारा जांच पूरी होने से पहले उसकी जानकारी मीडिया में लीक करने पर नियंत्रण करने के लिए निर्देश जारी किए जाएं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

Update: 2021-06-16 06:14 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को राज्य पुलिस को व्यापक निर्देश जारी करने का आदेश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्वेषण पूरा होने से पहले पुलिस द्वारा चल रहे अन्वेषण के बारे में मीडिया को कोई जानकारी न दी जाए।

मुख्य न्यायाधीश अभय एस ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने कहा कि,

"हमारा विचार है कि पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत व्यापक निर्देश जारी करने की आवश्यकता है कि अन्वेषण पूरा होने से पहले वे अन्वेषण की प्रकृति का खुलासा, सबूतों का खुलासा न करें।"

कोर्ट ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता और आरोपी की पहचान का खुलासा करने के संबंध में भी निर्दश दिया जाता है।

पीठ ने कहा कि,

"केवल निर्देश जारी करने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी, उल्लंघन के लिए पुलिस के खिलाफ उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करके निर्देश को लागू करना होगा।"

अदालत ने एच नागभूषण आर द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। याचिका में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में समाचार / किसी अन्य कार्यक्रम के हिस्से के रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन को रोकने के लिए वैधानिक नियम बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में यह भी प्रार्थना की गई है कि इस तरह की सामग्री के प्रकाशन को एक संज्ञेय अपराध बनाया जाना चाहिए, जिसके लिए उचित दंडात्मक सजा का प्रावधान होना जरूरी है।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि,

"प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया के साथ जानकारी साझा नहीं की जानी चाहिए। अगर जांच के दौरान सामने आई सामग्री का खुलासा किया जाता है, तो यह सुनवाई या जमानत आवेदनों की सुनवाई को प्रभावित कर सकती है।"

याचिका में कहा गया है कि विभिन्न मीडिया हाउस अश्लील वीडियो/आंशिक रूप से धुंधली नग्न तस्वीरें और कई घटनाओं के वीडियो समाचार कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। इसके अलावा यह प्रस्तुत किया गया कि समाचार प्रसारित करते समय टीवी एंकर वीडियो क्लिप में इस्तेमाल की गई अश्लील भाषा को दोहरा रहे हैं ताकि इसे जोर से और स्पष्ट किया जा सके ताकि जनता उस भाषा को समझ सके।

याचिका में यह भी कहा गया है कि केबल टीवी (विनियमन) अधिनियम,1995 में ऐसे शरारती प्रकाशन को रोकने के लिए ऐसा कोई प्रावधान या योजना नहीं है।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि,

"हालांकि अधिनियम की धारा 5 में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति केबल सेवा या किसी कार्यक्रम के माध्यम से तब तक प्रसारित या पुन: प्रसारित नहीं करेगा जब तक कि ऐसा कार्यक्रम निर्धारित कार्यक्रम कोड के अनुरूप न हो, लेकिन कार्यक्रम कोड की कोई परिभाषा नहीं है।"

याचिकाकर्ता ने कहा कि यह आवश्यक है कि विजुअल मीडिया में इस तरह की खबरों और क्लिपिंग की सामग्री को विनियमित किया जाए। याचिकाकर्ता ने इस तथ्य पर और चिंता जताई कि कई मामलों में मीडिया लगातार ऐसे मामलों की रिपोर्ट कर रहा है जो अदालतों के समक्ष विचाराधीन हैं।

याचिका में मांग की गई है कि दिशा-निर्देश तैयार करने के अलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को अदालत के समक्ष विचाराधीन मामलों का विश्लेषण करने से रोकने के लिए निर्देश जारी किए जाएं और राज्य पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वह किसी भी मामले के संबंध में अन्वेषण के दौरान एकत्र की गई जानकारी को प्रेस, जनता या मीडिया के समक्ष लीक न करें।

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