आईपीसी की धारा 308 के लिए आशय या ज्ञान और परिस्थितियां जिनमें अपराध किया गया, महत्वपूर्ण हैं, न कि चोट: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देखा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत कोई अपराध गठित करने के उद्देश्य से इरादा या ज्ञान और जिन परिस्थितियों में अपराध किया गया, वे महत्वपूर्ण हैं, न कि चोटें।
जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी की खंडपीठ ने सत्र न्यायाधीश, वाराणसी के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 308 , 323, 504, 506 के तहत अपराध करने के आरोपी की आरोपमुक्त करने की याचिका खारिज कर दी गई थी।
अदालत ने देखा,
" धारा 308 आईपीसी में दो भाग होते हैं। पहला गैर-चोट लगने के मामलों से संबंधित है, जबकि दूसरा भाग चोट लगने के कारण से संबंधित है। तो महत्वपूर्ण है इरादा या ज्ञान और जिन परिस्थितियों में कृत्य किया गया है न कि चोट।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोप तय करने के चरण में प्रथम दृष्टया मामले का परीक्षण लागू किया जाना चाहिए और यदि यह मानने का आधार है कि अभियुक्त ने अपराध किया है तो अदालत उचित रूप से यह कह सकती है कि प्रथम दृष्टया मामला उसके खिलाफ है मौजूद है और आरोप तय करना न्यायोचित है।
कोर्ट ने यह देखते हुए कि एफआईआर में आरोप हैं कि आरोपी व्यक्ति लोहे की रॉड, डंडा और देसी पिस्तौल से लैस थे और उन्होंने घायलों पर लाठी, डंडा और देसी पिस्तौल की बट से हमला किया, जिससे उनके सिर में चोट आई। न्यायालय ने सत्र न्यायाधीश, वाराणसी के अभियुक्त को आरोपमुक्त करने की मांग वाली याचिका को खारिज करने के आदेश को उचित पाया।
इस मामले में एफआईआर के अनुसार आरोपी व्यक्तियों ने शिकायतकर्ता और उसके भाई पर लोहे की रॉड, ईंट डंडा और एक देसी पिस्तौल के बट से हमला किया, जिससे शिकायतकर्ता के भाई को सिर में गंभीर चोट आई और इसके बाद वे भाग गए। आरोपी यह मानते हुए घटना स्थल से भाग गए कि शिकायतकर्ता और उसका भाई मर चुके हैं।
घायलों का मेडिकल टेस्ट किया गया तथा विवेचना के उपरान्त सभी नामजद अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। आरोपी-याचिकाकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 227 के तहत डिस्चार्ज के लिए एक आवेदन दिया, जिसमें कहा गया कि घायलों को कोई गंभीर चोट नहीं आई हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि मेडिकल परीक्षण करने वाले डॉक्टर ने कहा था कि चोटें साधारण प्रकृति की हैं। यह उनकी आगे की दलील थी कि एक्स-रे रिपोर्ट और सीटी स्कैन के आधार पर कोई पूरक रिपोर्ट तैयार नहीं की गई और इसलिए आईपीसी की धारा 308 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।
हालांकि, निचली अदालत ने आक्षेपित आदेश द्वारा दोनों पक्षों को सुनने के बाद उपरोक्त आवेदन को खारिज कर दिया। इससे व्यथित होकर, वर्तमान पुनरीक्षण याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा समान तर्क दिए गए।
दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि हमला मौत का कारण बनने के इरादे से किया गया था, जिसमें दो व्यक्तियों को चोटें आईं और इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी की डिस्चार्ज याचिका को खारिज करने का आदेश उचित है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि ट्र्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सभी तथ्यों, सबूतों और अन्य सामग्री पर विचार किया और उसका विश्लेषण करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि आरोप तय करने के लिए पर्याप्त आधार हैं। नतीजतन अदालत ने पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
अपीयरेंस
याचिकाकर्ता के वकील : मनोज कुमार चौधरी
विरोधी पक्ष के वकील: जीए
केस टाइटल - रामजी प्रसाद और 4 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [आपराधिक संशोधन नंबर - 137/2023]
केस साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (एबी) 40
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