शिवाजी महाराज के बारे में पूर्व राज्यपाल कोश्यारी के बयान पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- कोई अपराध नहीं किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बयान इतिहास का विश्लेषण और इससे सीखे जाने वाले सबक थे, छत्रपति शिवाजी महाराज, सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले के बारे में उनके बयानों के लिए उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली एक रिट याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस सुनील बी शुकरे और जस्टिस अभय एस वाघवासे की खंडपीठ ने कहा,
"संदर्भित बयानों पर गहराई से विचार करने से हमें पता चलेगा कि वे इतिहास के विश्लेषण और इतिहास से सीखे जाने वाले पाठों की प्रकृति के हैं। वे वक्ता के इरादे को भी दर्शाते हैं, जो यह है कि कम से कम वर्तमान समय में, हमें इतिहास से सीखना चाहिए और कुछ परंपराओं का पालन करने के परिणामों का भी एहसास होना चाहिए और अगर उन परंपराओं का पालन किया जाए तो शायद सबसे बुरा क्या हो सकता है।"
अदालत ने कहा कि बयानों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उच्च सम्मान में रखे गए किसी व्यक्ति के अपमान के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
"इसलिए, इन बयानों को कल्पना के किसी भी स्तर पर, किसी महान व्यक्ति के प्रति अपमानजनक नहीं माना जा सकता है।"
कोश्यारी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, "अगर कोई पूछे कि आपका आइकन कौन है, पसंदीदा नायक कौन है, तो बाहर देखने की जरूरत नहीं है। आपको यहां महाराष्ट्र में कई मिल जाएंगे। शिवाजी पुराने जमाने के हैं, मैं बात कर रहा हूं नए युग के बारे में आप यहां डॉ अम्बेडकर से लेकर डॉ गडकरी तक को पाएंगे।"।
एक अन्य भाषण उन्होंने कहा था, “सावित्रीबाई की शादी तब हुई थी जब वह दस साल की थीं और उनके पति की उम्र 13 साल थी। अब सोचिए, शादी के बाद लड़का-लड़की क्या कर रहे होंगे? वे क्या सोच रहे होंगे?
राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी ने कहा था कि शिवाजी ने औरंगजेब से माफी मांगी थी।
राम कतरनवरे नामक याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक सभा में कथित रूप से ऐतिहासिक शख्सियतों का अपमान करने के लिए कोश्यारी और त्रिवेदी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(v) के तहत मुंबई पुलिस आयुक्त के समक्ष कोश्यारी और त्रिवेदी के खिलाफ शिकायत भी दर्ज की थी।
धारा 3(1)(v) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उच्च सम्मान में रखे गए किसी दिवंगत व्यक्ति का अनादर करने के लिए न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान करती है ।
अदालत ने कहा कि बयानों में उन तथ्यों के बारे में वक्ता की राय को दर्शाया गया है, जिसका उद्देश्य दर्शकों को इस तरह से कार्य करने के लिए राजी करना है, जो समाज के लिए अच्छा हो। अदालत ने कहा कि बयानों के पीछे की मंशा समाज की बेहतरी के लिए उसे प्रबुद्ध बनाने की प्रतीत होती है।
इस प्रकार, अदालत ने पाया कि बयान प्रथम दृष्टया अधिनियम या किसी आपराधिक कानून के तहत अपराध नहीं बनाते हैं।
केस टाइटलः रामा अरविंद कतरनवरे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।
केस नंबरः क्रिमिनल रिट पीटिशन नंबर 5284/2022