बीमा पॉलिसी को आर्बिट्रेशन के लिए तभी भेजा जा सकता है, जब क्लेम का एक सिरा विवादित हो, न कि संपूर्ण देयता : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि आमतौर पर जब बीमा पॉलिसी के दावों के तहत मुआवजे की मात्रा बीमाकर्ता विवादों की देनदारी तक सीमित हो तो विवाद को आर्बिट्रेशन के लिए नहीं भेजा जाएगा।
जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने ऐसी स्थिति के बीच अंतर किया, जिसमें बीमाकर्ता ने पूरी देनदारी से इनकार किया और जहां पूरी देनदारी विवादित नहीं है, लेकिन केवल टाइटल के तहत दावा विवादित है, क्योंकि यह संदर्भ के दायरे से बाहर है।
न्यायालय ने माना कि पहले परिदृश्य में कोई आर्बिट्रेशन नहीं हो सकती है। हालांकि, दूसरा मुद्दा विवाद को आर्बिट्रेशन क्लोज के दायरे से बाहर नहीं रखेगा और प्रतिवादी के लिए आर्बिट्रेटर के समक्ष ऐसी आपत्तियां उठाना उचित होगा।
तथ्य
पक्षकारों ने 05.01.2018 को बीमा पॉलिसी समझौता किया। समझौते के क्लोज 7 में किसी भी विवाद के आर्बिट्रेशन के संदर्भ में प्रदान किया गया, जो बीमा पॉलिसी के तहत भुगतान की जाने वाली मात्रा के दावों के लिए है, जिसके लिए देयता अन्यथा स्वीकार की जाती है।
पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ। तदनुसार, याचिकाकर्ता ने आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग की। हालांकि, प्रतिवादी ने आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। नतीजतन, इसने आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
विवाद
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की:
1. पक्षों के बीच विवाद दायित्व का है न कि मात्रा का, इस प्रकार, यह आर्बिट्रेशन क्लोज के दायरे से बाहर है।
2. याचिकाकर्ता जो विवाद उठा रहा है, वह बीमा पॉलिसी द्वारा कवर नहीं किया गया। इस प्रकार, इसके संबंध में उत्तरदायित्व प्रतिवादी द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। नतीजतन, विवाद को आर्बिट्रेशन के लिए नहीं भेजा जा सकता है।
3. पूर्व-आर्बिट्रेशन चरण में न्यायालय को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि इस प्रकार उठाया गया विवाद आर्बिट्रेशन क्लोज के दायरे में आता है।
न्यायालय द्वारा विश्लेषण
न्यायालय ने पाया कि जब आर्बिट्रेशन क्लोज का दायरा नुकसान की मात्रा के निर्धारण तक सीमित है और बीमाकर्ता देयता से इनकार करता है तो उस स्थिति में अदालत पक्षकारों को आर्बिट्रेशन के लिए नहीं भेजेगी। (मल्लक स्पेशलिटी बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस, 2022 लाइवलॉ (बॉम) 519 देखें)
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के दावों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया, बल्कि केवल इस आधार पर आर्बिट्रेशन से इनकार किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए दावों में से बीमा पॉलिसी द्वारा कवर नहीं किया गया। न्यायालय ने विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों को इस आधार पर अलग किया कि उन सभी मामलों में बीमाकर्ता ने पूर्ण रूप से दायित्व से इनकार किया।
न्यायालय ने ऐसी स्थिति के बीच अंतर किया जिसमें बीमाकर्ता ने संपूर्ण देयता से इनकार किया और जहां संपूर्ण देयता विवादित नहीं है, लेकिन केवल टाइटल के तहत दावा विवादित है, क्योंकि यह संदर्भ के दायरे से बाहर है और यह माना कि यह दायित्व से इनकार का मामला नहीं है लेकिन केवल मामला, जहां दावे के टाइटल्स में से पॉलिसी के अंतर्गत नहीं आने के रूप में विवादित है।
न्यायालय ने माना कि पहले परिदृश्य में कोई आर्बिट्रेशन नहीं हो सकती है। हालांकि, दूसरा मुद्दा विवाद को आर्बिट्रेशन क्लोज के दायरे से बाहर नहीं रखेगा और प्रतिवादी के लिए आर्बिट्रेटर के समक्ष ऐसी आपत्तियां उठाना उचित होगा।
न्यायालय ने आगे कहा कि उन्हीं पक्षों के बीच अन्य दावे में प्रतिवादी ने विवाद को आर्बिट्रेशन के लिए भेजे जाने पर सहमति व्यक्त की।
तदनुसार, न्यायालय ने याचिका की अनुमति दी और एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त किया और डीआईएसी नियमों के तत्वावधान में आर्बिट्रेशन का संचालन करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: शिवालय कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, एआरबी 542/2023
दिनांक: 26.05.2023
याचिकाकर्ता के वकील: शिशिर माथुर, मुस्कान त्यागी और प्रतिवादी के वकील: प्रतीक मिश्रा, मोहित कुमार
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