'अवमानना की शुरुआत आलोचना का दम घोटने का प्रयास' : पूर्व न्यायाधीशों/सरकारी अधिकारियों/ कार्यकर्ताओं ने प्रशांत भूषण के साथ एकजुटता दिखाई

Update: 2020-07-27 11:46 GMT

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के मामले में पूर्व न्यायाधीशों, पूर्व वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, राजदूतों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने उनके पक्ष में एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है।

बयान में कहा गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वोच्च न्यायालय के कामकाज को लेकर कई मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करने वाले श्री भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करना ''आलोचना का दम घोटने'' का एक प्रयास है।

उन्होंने कहा कि,'' प्रतिशोध या आपराधिक अवमानना की कार्रवाई के डर के बिना एक महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में देश के सर्वोच्च न्यायालय को सार्वजनिक चर्चा के लिए ओपन होना चाहिए।''

पिछले हफ्ते, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को नोटिस जारी किया था। जिसमें उनसे पूछा गया था कि न्यायपालिका पर किए गए उनके ट्वीट के मामले में क्यों न उनके खिलाफ अदालती अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएं?

इस वक्तव्य के 131 हस्ताक्षरकर्ताओं ने अवमानना की कार्यवाही पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि-

"पिछले कुछ वर्षों में, राज्य द्वारा लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने और सरकारी ज्यादतियों की जाँच करने के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी संवैधानिक रूप से अनिवार्य भूमिका को निभाने में दिखाई गई अनिच्छा पर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

ये सवाल समाज के सभी वर्गों- मीडिया, शिक्षाविदों, नागरिक समाज संगठनों, कानूनी बिरादरी के सदस्यों और यहां तक कि खुद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा उठाए गए हैं। हाल ही में, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी संकट को रोकने के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उचित समय पर हस्तक्षेप न करना या ऐसा करने की इच्छा न दिखाना भी सवालों के घेरे में आई है या इस पर सवाल उठाए गए हैं।

वहीं कोरोना महामारी की शुरुआत हुए पांच महीने बीत चुके हैं,उसके बावजूद भी सीमित तरीके से ,फिजिकल हियरिंग या सुनवाई फिर से शुरू न करने के मामले में भी अदालत के फैसले को लेकर चिंताएं जताई गई हैं।

हम सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों से इन चिंताओं पर ध्यान देने और जनता के साथ खुले और पारदर्शी तरीके से जुड़ने का आग्रह करते हैं। श्री भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की शुरुआत करना (जिन्होंने अपने ट्वीट में इन चिंताओं में से कुछ को स्पष्ट किया था), इस तरह की आलोचना को दबाने का एक प्रयास है। जबकि इस तरह की आलोचना सिर्फ प्रशांत भूषण द्वारा ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतांत्रिक और संवैधानिक सेटअप के सभी हितधारकों द्वारा की जा रही है। हमारा मानना है कि संस्था को इन वास्तविक चिंताओं को दूर करना चाहिए या इन पर विचार करना चाहिए।"

बयान में कहा गया है कि ज्यादातर कार्यशील लोकतंत्र जैसे कि यूएसए और यूके ने आपराधिक अवमाननाकी अवधारणा को परिगत किया है। उन्होंने कहा कि भारत में भी यह सिद्धांत है कि न्यायपालिका की आलोचना को ''अवमानना की शक्ति का अंधाधुंध उपयोग करके'' रोकना नहीं चाहिए। वहीं इस सिद्धांत को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता दी गई है।

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कोर्ट से आग्रह किया है कि न्याय और निष्पक्षता के हित में और सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को बनाए रखने के लिए श्री भूषण के खिलाफ सू-मोटो अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के निर्णय पर फिर से विचार करें और जल्द से जल्द इसे वापस लिया जाए।

यह आपराधिक अवमानना की कार्यवाही श्री भूषण के 27 जून के ट्वीट को लेकर शुरू की गई है। जिसमें कहा गया था कि-

''जब भविष्य में इतिहासकार पिछले 6 वर्षों में वापस मुड़ कर देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र नष्ट हो गया है। उस समय वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे और विशेष रूप से अंतिम 4 सीजेआई की भूमिका को।''

शीर्ष अदालत का कहना है कि उनको एक वकील से शिकायत मिली है,जो भूषण द्वारा 29 जून को किए गए ट्वीट के संबंध में है। इस ट्वीट में भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा हार्ले डेविडसन मोटर बाइक की सवारी करने टिप्पणी की गई थी।

हाल ही में, ट्विटर ने दोनों ट्वीट्स पर रोक लगा दी है और उन्हें एक संदेश के साथ छुपाया गया कि ''कानूनी मांग के जवाब में @pbhushan1 के इस ट्वीट को भारत में  हटा दिया गया है।''

बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एपी शाह, वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर नंदराजोग, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, सी यू सिंह, संजय हेगड़े, गोपाल शंकरनारायणन, आनंद ग्रोवर, अमीर सिंह चड्ढा, मिहिर देसाई, अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास, सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, जेएनयू के प्रोफेसर दीपक नैयर, राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा, पूर्व राज्यसभा सांसद डी राजा आदि शामिल हैं। 

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