इनकम टैक्स : सूचना देने वाले को जांच के बारे में जानकारी देना अनुचित और हानिकारक : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने आगाह किया है कि कि किसी आयकर मामले में चल रही जांच की जानकारी सूचना देने वाले (मुखबिर) को देना न केवल अनुचित है, बल्कि जांच के लिए भी हानिकारक है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की खंडपीठ ने यह टिप्पणी मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ दायर एक मामले की सुनवाई के दौरान की। मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में आयकर विभाग को निर्देश दिया था कि वह प्रतिवादी द्वारा दायर कर चोरी की शिकायत के संबंध में अपनी कार्रवाई की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे।
आयकर विभाग के जांच विभाग के प्रमुख निदेशक ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि एसीएमएम (विशेष अधिनियम) द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया जाए क्योंकि वे अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किए गए थे।
यह तर्क दिया गया था कि अगर कोई शिकायत/ मामला कोर्ट के समक्ष लंबित नहीं है तो सीआरपीसी का कोई भी प्रावधान एसीएमएम को ऐसी शक्ति प्रदान नहीं करता है कि वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की इन्वेस्टिगेशन विंग को स्टेटस रिपोर्ट /एक्शन रिपोर्ट दायर करने के लिए कहें।
इस सबमिशन को ध्यान में रखते हुए बेंच की राय थी कि एसीएमएम ने हाई कोर्ट के निहित अधिकार क्षेत्र का ''गलत तरीके से'' उपयोग कर लिया था, जो कानून के तहत अस्वीकार्य है। यह माना गया कि,
''इस तथ्य में कोई विवाद नहीं है कि निहित शक्तियां केवल इस न्यायालय के साथ पास हैं, न कि अधीनस्थ न्यायपालिका के पास। जहां तक वर्तमान मामले का संबंध है, प्रतिवादी नंबर 1 ने सीआरपीसी या आयकर अधिनियम में उल्लिखित किसी भी प्रक्रिया के बिना ही आवेदन दायर किया था। इसके अलावा, सीखा न्यायाधीश ने भी यह महसूस किए बिना ही निर्देश दे दिया कि वह सीआरपीसी के तहत निहित शक्ति नहीं रखता है।''
न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि वर्तमान मामले की तरह कर चोरी की याचिकाओं से संबंधित मामलों में, न्यायालयों को अपनी शक्तियों का संयम से इस्तेमाल करना चाहिए।
कहा गया कि,'' यह एक अच्छी तरह से तय सिद्धांत है कि कर चोरी याचिका का केवल व्यापक परिणाम ही शिकायतकर्ता को बताया जा सकता है या सूचित किया जा सकता है, वह भी जांच की समाप्त होने के बाद। आयकर विभाग के पास टीईपी से निपटने के लिए जांच की एक विशिष्ट रूपरेखा या ढांचा है और आयकर महानिदेशालय (इन्वेस्टिगेशन) के कार्यालय द्वारा की गई जाँच के संबंध में जानकारी शिकायतकर्ता को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उक्त कार्यालय आरटीआई अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर है।''
एसके अग्रवाला बनाम डाइरेक्टरेट जनरल आॅफ सेंट्रल एक्साइज इंटेलिजेंस, (2008)एससीसी आनलाइन 1781 मामले में दिए गए फैसले का संदर्भ भी दिया गया था,जिसमें यह स्पष्ट रूप से आयोजित किया गया था कि यह अनुचित होगा और यहां तक कि किसी मामले में चल रही जांच के लिए हानिकारक भी,यदि सूचना के अधिकार को लागू करने के नाम पर सूचना देने वाले को जांच की प्रगति में घुसपैठ करने की अनुमति दे दी जाए।
इसप्रकार, धारा 482 के तहत दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया गया और लगाए गए आदेशों को रद्द कर दिया गया क्योंकि वह अवैध, विकृत और न्यायिक अधिकार के बिना पारित किए गए थे। ।
केस का शीर्षक- प्रधान निदेशक, आयकर (इन्वेस्टिगेशन -2) बनाम राजीव यदुवंशी व अन्य।
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