अलग अलग मामलों में जुर्माने की राशि नहीं चुकाने पर क़ैद की सज़ा एक के बाद एक चलने का निर्देश नहीं दिया जा सकता : केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी आरोपी को कुछ मामलों में जुर्माने की राशि नहीं देने पर क़ैद की सज़ा के बारे में यह निर्देश नहीं दिया जा सकता कि सज़ा एक के बाद एक दी जाएगी।
न्यायमूर्ति आर नारायण पिशारदी ने कहा जुर्माना नहीं जमा करने के लिए क़ैद को सज़ा नहीं माना जा सकता और यह दंड है जो जुर्माना नहीं देने के लिए दिया गया है।
इस मामले में, आरोपी को चेक बाउंस हो जाने के तीन मामलों में दोषी पाया गया था। हर एक मामले में, उसे अदालत के उठने तक क़ैद की सज़ा दी गई थी और उसे जुर्माना भरने को कहा गया था और ऐसा नहीं कर पाने पर उसे तीन माह के साधारण क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी। उसने इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपील की और आग्रह किया कि तीनों मामलों में क़ैद की सज़ा को एक ही साथ चलायी जाए।
अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 427(1) के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को एक से अधिक मामले में क़ैद की सज़ा मिली है तो एक मामले में मिली क़ैद या आजीवन क़ैद की सज़ा एक के समाप्त हो जाने के बाद दूसरी सज़ा चलेगी बशर्ते कि अदालत ने यह नहीं कहा हो कि ये सज़ा एक साथ चलेंगी।
अदालत ने कहा,
"जुर्माना नहीं भरने के लिए क़ैद को सज़ा नहीं कहा जा सकता। सज़ा वह है जो अवश्य ही भुगती जानी पड़ेगी बशर्ते कि उचित कार्यवाही द्वारा इसे निरस्त न कर दिया गया हो या इसके एक हिस्से को या इसे पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। लेकिन जहां तक जुर्माना नहीं भरने के लिए क़ैद की सज़ा की बात है, जुर्माना चुकाकर आरोपी इस सज़ा से बच सकता है।"
इसके बाद अदालत ने इस मामले को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि जुर्माना नहीं भरना सीआरपीसी की धारा 427(1) के तहत सज़ा नहीं है।