''अगर एक औरत को लगता है कि वह पुरूष के सहयोग के बिना कुछ भी नहीं है, तो यह सिस्टम की विफलता है'': केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां करते हुए बताया कि समाज सिंगल मां को कैसा मानता है और उनसे किस तरह का व्यवहार करता है। कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि राज्य इन सिंगल मां का सहयोग करने के लिए योजनाएं तैयार करे।
जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस डॉ कौसर एदप्पागाथ ने कहा कि,
जिस देश में लोग देवी की पूजा करते हैं, उस देश में जहाँ लोगों को स्त्री के बारे में सिखाया गया है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः'' (मनुस्मृति (3.56)) (जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों का सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं)। जिस राज्य में हम शत प्रतिशत साक्षरता का दावा करते हैं, वहां महिलाओं के प्रति हमारा रवैया घृणास्पद है; एक सिंगल माँ के लिए कोई वित्तीय या सामाजिक सहयोग नहीं है।
खंडपीठ ने कहा कि एक सिंगल मां,जिसने अपने बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुना और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करते हुए उसे जन्म दिया,उसके बाद उसे यह मानने के लिए मजबूर किया जाता है कि उसे इस अपराध बोध के परिणामस्वरूप अलग-थलग कर दिया गया है।
''उसे (सिंगल माँ) सिस्टम से शायद ही कोई सहयोग मिला है'' यह टिप्पणी करते हुए न्याधीशों ने कहा कि,''अब समय आ गया है कि सरकार सिंगल मां का सहयोग करने के लिए एक योजना तैयार करे।''
न्यायालय ने यह टिप्पणियां उस मामले पर विचार करने के बाद की हैं,जहां लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली एक मां (अनीथा) ने अपने बच्चे को गोद देने के लिए सरेंडर कर दिया था क्योंकि उसके माता-पिता और बच्चे के जैविक पिता ने उससे संबंध खत्म कर लिए थे। लेकिन जब उनका पुनर्मिलन हुआ तो उन्होंने अपने बच्चे को वापस पाने के लिए न्यायालय से संपर्क किया।
कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर ध्यान दिया कि महिला सिंगल मदर होने और अपने बच्चे के भविष्य की चिंता के चलते परेशान होकर उसे सरेंडर करने को मजबूर हो गई थी।
आदेश में कहा गया कि,
''सामाजिक कार्यकर्ता के साथ अनीथा के चैट संदेशों से यह साफ दिखता है कि कानूनी रूप से विवाहित न होने पर एक महिला के लिए सिंगल मां बनना कितना असुरक्षित है। इन चैट संदेशों के माध्यम से मातृत्व की दुर्बलता और दुर्दशा दिखती है,जो अनीथा के गर्भ में पल रहे शिशु की देखभाल को भी दर्शाती है।''
अनीथा की हालत पर परेशान, कोर्ट ने कहा,
''एनोमी अनीथा को एक सिंगल माँ के रूप में उन परेशानियों का सामना करना पड़ा, जो समाज द्वारा बनाई गई है। अनीथा ने कभी भी अपनी कोख को नष्ट करने का प्रयास नहीं किया; उसने जन्म देने के दर्द को सहन किया; हर माँ की तरह वह बच्चे की देखभाल करना चाहती है...''
अदालत ने कहा कि अनीथा बच्चे को पालने के लिए तैयार थी, लेकिन सामाजिक परिस्थितियों से उसे इसकी अनुमति नहीं दी थी।
मामले के तथ्यों को देखने के बाद कोर्ट ने इंगित किया कि,''उसने सोचा कि आदमी के सहयोग के बिना, वह अपना जीवन नहीं चला सकती है।''
मौजूदा सिस्टम के निर्माण के तरीके पर सवाल उठाते हुए, कोर्ट ने कहा कि,
''अगर एक महिला को लगता है कि वह पुरुष के सहयोग के बिना कुछ भी नहीं है तो यह सिस्टम की विफलता है।''
इस संदर्भ में, कोर्ट ने राज्य से आह्वान किया कि वह अनीथा जैसी सिंगल मां की सहायता के लिए सिस्टम विकसित करे।
अदालत ने कहा कि ''राज्य को उसे यह एहसास कराना चाहिए है कि उसके अस्तित्व को कम करने वाली ताकतों के साथ उसके संघर्ष को कानून के शासन के समर्थन से विधिमान्य किया जा सकता है। यह आत्म विश्वास उसकी पहचान और सम्मान होना चाहिए।''