आईएएफ सार्जेंट का पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने से इनकार करना उचित नहीं; प्रतिदिन के खर्च और शिक्षा बहुत महंगी है : राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान समय में जबकि शिक्षा बहुत महंगी हो गई है और जीवन में प्रतिदिन के खर्च के लिए भी उचित राशि की आवश्यकता होती है, ऐसे में पत्नी और बेटी को भरण-पोषण से वंचित करना उचित नहीं है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता, जो भारतीय वायु सेना में एक सार्जेंट है, को निर्देश दिया है कि वह अपनी पत्नी व बेटी को भरण-पोषण के तौर पर प्रतिमाह 15,000 रुपये की राशि का भुगतान करे।
याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19(4) रिड विद सीआरपीसी की धारा 397 और 401 के तहत वर्तमान आपराधिक समीक्षा याचिका दायर कर फैमिली कोर्ट आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उसकी पत्नी की तरफ से दायर उस आवेदन को स्वीकार कर लिया था,जिसमें उसने भरण-पोषण दिलाए जाने की मांग की थी।
पूजा गौर बनाम उमित उर्फ पिंकी पटेल (2016) 3 डीएमसी 194 के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए, याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए और 406 के तहत चल रहे एक मामले में दिनांक 14.07.2021 को दिए गए आदेश के तहत बरी कर दिया गया है। इसलिए, पूर्वाेक्त मिसाल कानून इस मामले में लागू होता है, और इस प्रकार, वह भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि उसकी 55,000 रुपये की मासिक आय है। वहीं बकाया राशि ने उसके लिए वित्तीय कठिनाइयां पैदा की है और उनका एक संयुक्त परिवार है, जिसकी जिम्मेदारी उसी पर है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह सब दलीलें भी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण से वंचित करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं।
डॉ. जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
''वर्तमान समय में, जब शिक्षा स्वयं बहुत महंगी हो गई है और जीवन में प्रतिदिन के खर्च के लिए भी एक उचित राशि की आवश्यकता होती है, पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने से इनकार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। मामले को वापस भेजने के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा किए गए निवेदन का भी कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि आय स्वीकार की जा चुकी है और भरण-पोषण की मात्रा उचित है क्योंकि उसे केवल पत्नी को भरण-पोषण के तौर पर प्रतिमाह 10,000 रुपये और बेटी के लिए 5,000 रुपये की राशि देनी है, जबकि याचिकाकर्ता स्वीकार्य रूप से लगभग 55,000 रुपये की मासिक आय अर्जित कर रहा है।''
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत मिसाल कानून वर्तमान मामले में लागू नहीं होता है क्योंकि याचिकाकर्ता को केवल संदेह का लाभ देते हुए बरी किया गया है। फैसले को पढ़ने पर, यह पता चलता है कि गवाहों के बयानों में एकरूपता थी और केवल कुछ छोटी सी विसंगतियों के आधार पर याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ दिया गया है।
मामले की मैरिट पर गहन शोध करने से इनकार करते हुए, अदालत ने कहा कि एक बार संदेह का लाभ लेने के बाद, याचिकाकर्ता यह दावा करने का हकदार नहीं है कि वह पत्नी और बेटी को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
याचिकाकर्ता, श्री राणा राम वीरा, अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। प्रतिवादी की तरफ से एडवोकेट डॉ शैलेंद्र कला व श्री अनुज कला पेश हुए।
केस टाइटल- राणा राम वीरा बनाम पायल
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (राज) 188
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें