"राज्य सरकार विधवा महिला द्वारा घर से दूर रहते हुए आजीविका कमाने की कल्पना कैसे कर सकती है?": गुजरात हाईकोर्ट ने निष्कासन आदेश पर रोक लगाई
गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को गुजरात सरकार द्वारा पारित निष्कासन आदेश पर रोक लगाई, जिसमें भरूच जिले से एक विधवा महिला को शराब की तस्करी के अपराध में छह महीने की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय की खंडपीठ ने मामले में शामिल तथ्य के आधार पर राज्य सरकार से पूछा कि राज्य सरकार विधवा महिला द्वारा छह महीन से घर से दूर रहते हुए आजीविका कमाने की कल्पना कैसे कर सकती है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि उक्त निष्कासन आदेश गुजरात पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 (ए) के तहत शक्तियों के प्रयोग में पारित किया गया था।
पूरा मामला
याचिकाकर्ता- विधवा महिला के खिलाफ छह प्राथमिकी दर्ज है। इसी के आधार पर उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, भरूच ने 23 फरवरी, 2021 के एक्सटर्नमेंट के आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने इस आदेश की वैधता को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि अनुविभागीय मजिस्ट्रेट ने सुनवाई और वकील नियुक्त करने का अवसर दिए बिना आदेश पारित किया था। यह भी कहा गया कि केवल प्राथमिकी को इस बात का प्रमाण नहीं माना जा सकता कि याचिकाकर्ता खतरनाक व्यक्ति या बूटलेगर है।
याचिकाकर्ता द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि वह एक विधवा है और भरूच जिले के बाहर उसका कोई घर नहीं है और फिर भी उसे भरूच जिले (छोटे अपराध के लिए) से निष्कासित कर दिया गया। याचिकाकर्ता एक विधवा महिला है और उसने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि आदेश बिना सोचो समझे दिया गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया गया कि वह शराब की तस्करी के व्यवसाय में शामिल नहीं है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, लेकिन याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप निषेध अधिनियम के तहत लगाया गया है, लेकिन अपराध की राशि जो कथित तौर पर केवल 60 रुपये है, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित आदेश गैर-कानूनी और बिना सोचे समझे पारित किया गया था।
कोर्ट ने अंत में कहा कि अगर आगे के निष्पादन के आदेश और कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया जाता है, तो न्याय का अंत हो जाएगा। इसलिए न्यायालय ने आदेश दिया कि इस निष्कासन आदेश के कार्यान्वयन और निष्पादन पर अगले आदेश तक रोक रहेगी।