अगर एंटीजन टेस्ट के बाद किसी व्यक्ति को COVID संक्रमण का संदिग्ध माना गया है तो अस्पताल उसकी मौत को NON-COVID नहीं दर्शा सकते : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया है कि उन व्यक्तियों की मृत्यु की गणना रिकॉर्ड बनाए रखने और शवों के दाह-संस्कार के उद्देश्य से COVID मृत्यु के रूप में मानी जाए,जिनको एंटीजन टेस्ट के बाद COVID19 वायरस से प्रभावित होने वाला संदिग्ध माना गया था।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि राज्य में टेस्ट की संख्या में कमी आई है और यह भी स्वभाविक है कि कोरोना जैसे लक्षणों का अनुभव करने वाले लोग अक्सर आरटी-पीसीआर या अन्य सत्यापित COVID-टेस्ट नहीं करवाते हैं और उनकी मृत्यु को कोरोना से होने वाली मौत नहीं माना जाता है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि यह एक ''गंभीर मुद्दा'' है क्योंकि ऐसे COVID संदिग्ध व्यक्तियों के शव उनके परिवारों को सौंपे जा रहे हैं, जिससे वायरस का आगे प्रसार होने का जोखिम बढ़ जाता है।
पीठ ने कहा कि,
''राज्य में होने वाली टेस्टिंग के संबंध में जो आंकड़े एफिडेविट में दिए गए हैं,वे आश्चर्यजनक रूप से खुलासा करते हैं कि टेस्ट की संख्या में कमी आई है ...
यदि कोई ट्रू नट नहीं है और यदि एंटीजन किसी मरीज का निगेटिव पाया जाता है, तो ऐसे मरीज के मामले को केवल एक संदिग्ध के रूप में लिया जाता है और इसलिए COVID प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जाता है और यदि उसकी मृत्यु हो जाती है, तो COVID प्रोटोकॉल का पालन किए बिना ही उसके शव को परिवार के सदस्यों को सौंप दिया जाता है। यह काफी गंभीर मुद्दा है।
भले ही यह एंटीजन टेस्ट के लिए COVID रोगियों की संदिग्ध मौत का मामला है, हमारा मानना है कि मृत्यु के ऐसे सभी मामलों को COVIDकी मृत्यु के रूप में लिया जाना चाहिए और किसी भी अस्पताल को इन मामलों को NON-COVID के रूप में दिखाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए,जिससे उस विशेष अस्पताल में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा कम हो सके।''
मेरठ के मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने कोर्ट को सूचित किया कि ऑक्सिजन की कमी के कारण जिन 20 लोगों की कथित तौर पर मौत हुई थी,उनमें से केवल तीन मरीजों की ही कोरोना की रिपोर्ट पाॅजिटिव थी और अन्य एंटीजन टेस्ट किया गया था,जो नेगेटिव आया था। उन्होंने कहा कि ऐसी मौतों को कोरोना संक्रमण से होने वाली मौत नहीं माना जा सकता क्योंकि वे केवल संदिग्ध मामले थे।
इस स्पष्टीकरण को स्वीकार करने में असमर्थ, खंडपीठ ने कहा कि,
''COVIDवृद्धि के इन दिनों में हमारा विचार है कि यदि कोई व्यक्ति आईएलआई (इन्फ्लुएंजा जैसे संक्रमण) के साथ अस्पताल में भर्ती होता है और जहां केवल एंटीजन टेस्ट किया जाता है या अगर आरटीपीसीआर में देरी हो जाती है और इस बीच रोगी की मृत्यु हो जाती है और यदि ऐसे मृत व्यक्तियों का हृदय या किडनी की समस्या होने का कोई इतिहास नहीं था, तो केवल रिकॉर्ड बनाए रखने के सीमित उद्देश्य और शव का दाह-संस्कार COVID प्रोटोकॉल के अनुसार करने के लिए यह अनुमान लगाया जाना चाहिए कि ऐसी मौत कोरोना संक्रमण के कारण ही हुई है।''
पीठ ने कहा कि सरकारी अधिकारियों और अस्पतालों को यह सुनिश्चित करने में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि मृतक व्यक्तियों के शरीर का COVID प्रोटोकॉल के अनुसार दाह-संस्कार किया जाए।
बेंच ने कहा,''किसी को भी तब तक अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जाता है, जब तक कि उसकी खुद की ऐसी स्थिति नहीं हो जाती है कि उसका एसपीओ 2 का स्तर नीचे आ जाए यानी 94 से नीचे और इसलिए, ऐसी मौतों को NON-COVID मौत मानना बहुत गलत होगा।''
केस का शीर्षकः In-Re Inhuman Condition At Quarantine Centres…
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