'अस्पताल के निदेशक और विभाग के प्रमुख को रोगी के बीमारी की प्रकृति और उपचार के बारे में जानकारी होनी चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में चिकित्सा संस्थान के निदेशक और विभाग के प्रमुख को रोगी के कल्याण को ध्यान में रखते हुए रोगी के बीमारी की प्रकृति और इलाज के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने यह अवलोकन उस मामले में किया, जिसमें बेंच मेहराज बानो द्वारा दायर एक पत्र अपील पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया कि चिकित्सा उपचार और उसके नाबालिग बेटे के बीमार होने के संबंध में कुछ निजता की जानकारी आईएचबीएएस में उपचार करने वाले डॉक्टरों के अलावा अन्य व्यक्तियों के साथ साझा किया गया।
अपीलकर्ता ने 28 अप्रैल को एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश का समर्थन किया, जिसमें न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह ने आईएचबीएएस की ओर से पेश हुए एडवोकेट तुषार सन्नू द्वारा दिए गए आश्वासन पर आवेदन का निस्तारण किया कि डॉक्टरों के इलाज की टीम यानी विभाग के प्रमुख और निदेशक के अलावा किसी और को रोगी के रिकॉर्ड तक पहुंचने की अनुमति नहीं है।
डिवीजन बेंच के समक्ष अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत किया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 5 और धारा 23 (निजता का अधिकार) और के.एस पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ और अन्य (2017) 10 एससीसी 1 मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार किसी मरीज का इलाज कर रहे डॉक्टर को छोड़कर उस मरीज के चिकित्सा उपचार के संबंध और बीमारी की जानकारी किसी और के साथ साझा नहीं किया जाना चाहिए।
पीठ ने पूर्वोक्त प्रस्तुतिकरण का विश्लेषण करते हुए कहा कि,
"जैसा कि उपर्युक्त प्रावधान में स्पष्ट है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 में ही एक अपवाद का जिक्र है ताकि मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति को उचित देखभाल और उपचार प्रदान किया जा सके। हमारे विचार में इसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। आईएचबीएएस के निदेशक और विभाग के प्रमुख को रोगी के बीमारी की प्रकृति और उपचार के बारे में जानकारी होनी चाहिए। यह रोगी के कल्याण के लिए है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यह सुनिश्चित करना है कि उपचार चल रहा है या नहीं। इलाज सही दिशा में है या नहीं, इसकी निगरानी आईएचबीएएस के निदेशक और विभाग के प्रमुख को करनी होगी।"
पीठ ने आगे कहा कि चिकित्सा क्षेत्र में एचओडी या निदेशक के साथ एक डॉक्टर का ऐसा परामर्श जरूरी है।
पीठ ने अवलोकन किया कि,
"इस तरह के परामर्श रोगी के उपचार देने में मददगार साबित हो सकते हैं। यह वकील के तर्क की तरह है जब भी मुख्य वकील मामले में बहस करता है तो वह हमेशा अन्य जूनियर वकीलों से सहायता लेता है।"
कोर्ट ने एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश से सहमति जताते हुए आईएचबीएएस के निदेशक और विभाग के प्रमुख को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित करें कि रोगी के बीमारी की प्रकृति और उपचार की जानकारी किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं की जाएगी।