यदि उत्तराधिकार खुलने के दिन पुनर्विवाह न किया हो तो पुनर्विवाहित हिंदू विधवा का मृतक पति की संपत्ति पर अधिकार: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2021-09-11 06:48 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने माना है कि एक पुनर्विवाहित विधवा का यदि पति की मृत्यु के समय पुनर्विवाह नहीं हुआ था तो अपने मृत पति की संपत्ति पर अधिकार है। इस स्थिति का वर्णन करने के लिए कोर्ट ने "जिस दिन उत्तराधिकार खुलता है" वाक्या का इस्तेमाल किया।

जस्टिस एसएम मोदक की सिंगल जज बेंच ने पिछले महीने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 (जिसे 1983 में निरस्त कर दिया गया था) के प्रावधानों पर चर्चा करने के बाद पारित एक आदेश में कहा, "1956 के अधिनियम की धारा 24 में 'उत्तराधिकार खुलने की तारीख' पर जोर दिया गया है। उत्तराधिकार खुलने की तारीख पर पुनर्विवाहित विधव की स्थिति विधवा की होनी चाहिए।' 

शब्द "यदि तारीख पर उत्तराधिकार खुलता है" 1856 के अधिनियम की धारा 2 में जगह नहीं पाता है। इसलिए हमें 1956 के अधिनियम की धारा 24 में इन प्रावधानों को शामिल करते हुए विधायिका के इरादे का सम्मान करना होगा।"

अदालत ने फैसले में कहा, "दूसरे शब्दों में यदि उत्तराधिकार खुलने पर विधवा ने पुनर्विवाह नहीं किया है तो 1956 के अधिनियम की धारा 24 के तहत अयोग्यता लागू नहीं होगी।"

ये घटनाक्रम जनिवंतबाई वानखड़े नाम की एक महिला की ओर से एक आदेश के खिलाफ दायर अपील में आया है, जिसने जयवंताबाई के मृत बेटे की विधवा सुनंदा को उनकी सभी सेवानिवृत्ति बकाया राशि को प्राप्त करने की अनुमति दी। जयवंताबाई के बेटे और सुनंदा के मृत पति अनिल भारतीय रेलवे में पॉइंटमैन के रूप में काम करते थे।

19 अप्रैल, 1991 को उनका एक दुर्घटना में निधन हो गया, उस समय सुनंदा अनिल से आपसी विवादों के कारण अलग रह रही थी लेकिन तब तक किसी और से शादी नहीं हुई थी। अनिल से उसका तलाक भी नहीं हुआ था। अनिल की मौत के लगभग एक महीने बाद उसने दोबारा शादी की ।

1993 में, जयवंताबाई ने रेलवे में अनिल की सेवानिवृत्ति के बकाया पर दावा किया और उन्हें सुनंदा के पुनर्विवाह के बारे में भी बताया। रेलवे ने सुनंदा के पक्ष में आदेश पारित किया।

जयवंताबाई ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के समक्ष आदेश को चुनौती दी, जिन्होंने तब यह कहते हुए आदेश पारित किया कि जयवंताबाई और सुनंदा दोनों पैसे के हकदार हैं, लेकिन जयवंताबाई को सुनंदा के खिलाफ अपना हिस्सा वसूलने के लिए अलग-अलग कार्यवाही करने के लिए कहा।

जयवंताबाई ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क देते हुए चुनौती दी थी कि पुनर्विवाह के कारण सुनंदा का अनिल के सेवानिवृत्ति बकाया पर कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस मोदक ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 24 के अनुसार विधवा को पुनर्विवाह के बाद ही संपत्तियों में हिस्सेदारी का दावा करने से अयोग्य घोषित किया गया है न कि अगर उसकी शादी "उत्तराधिकार खुलने की तारीख पर" नहीं हुई थी, जो कि, यह मामला 19 अप्रैल 1991 का है।

अदालत ने मृत पति की सेवानिवृत्ति बकाया राशि पर सुनंदा के अधिकारों को बरकरार रखा और कहा, "जब उत्तराधिकार खुलता है, उस समय पुनर्विवाहित विधवा की स्थित‌ि विधवा की होनी चाहिए।"

अदालत ने हालांकि, उसे अपनी पूर्व सास को 50 प्रतिशत पैसा वापस करने के लिए भी कहा क्योंकि रेलवे ने उसे पूरा भुगतान किया था।

केस शीर्षक: जयवंताबाई वानखड़े बनाम सुनंदा व अन्य।

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