'आप विशेष नहीं हैं': दिल्ली हाईकोर्ट ने CUET स्कोर के बजाय CLAT आधारित 5-वर्षीय LLB एडमिशन के खिलाफ जनहित याचिका पर दिल्ली यूनिवर्सिटी से कहा

Update: 2023-08-17 06:06 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी से कहा कि जब अन्य सेंट्रल यूवनिर्सिटी CUET स्कोर के आधार पर एडमिशन दे रहे हैं तो नए शुरू किए गए फाइव ईयर इंट्रीगेटेड लॉ कोर्स में केवल CLAT रिजल्ट आधार पर देना 'विशेष' नहीं है।

चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की 04 अगस्त को जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा,

"राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत एक बार भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय द्वारा यह निर्णय ले लिया गया कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन केवल CUET के आधार पर किया जाना है, तो आप विशेष नहीं हैं।"

अदालत ने यूनिवर्सिटी के वकील को मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए समय दिया और इसे 25 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। भारत संघ को भी अपना जवाब दाखिल करने या मामले में उचित निर्देश लेने के लिए समय दिया गया।

खंडपीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि यदि सुनवाई की अगली तारीख तक कोई जवाबी हलफनामा दायर नहीं किया जाता है तो अंतरिम राहत पर मामले की अंतिम सुनवाई की जाएगी।

दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से पेश वकील ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख तक यूनिवर्सिटी फाइव ईयर इंट्रीगेटेड लॉ कोर्स में एडमिशन के लिए आवेदन आमंत्रित करने के लिए कोई विज्ञापन जारी नहीं करेगा।

यह याचिका दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ फैकल्टी के छात्र प्रिंस सिंह ने दायर की है।

सिंह का मामला है कि यूनिवर्सिटी ने विवादित अधिसूचना जारी करते समय "अनुचित और मनमानी शर्त" लगाई कि फाइव ईयर इंट्रीगेटेड लॉ कोर्स में एडमिशन पूरी तरह से CLAT- UG 2023 परिणाम में योग्यता के आधार पर होगा, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा का अधिकार का उल्लंघनकारी है।

याचिका में कहा गया,

“यह कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ फैकल्टी में फाइव ईयर इंट्रीगेटेड लॉ कोर्स में एडमिशन के लिए लगाई गई शर्त पूरी तरह से अनुचित और मनमानी है। इसमें किसी भी समझदार अंतर का अभाव है और दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी में फाइव ईयर इंट्रीगेटेड लॉ कोर्स में एडमिशन के उद्देश्य के साथ इसका कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।”

जनहित याचिका में प्रतिवादियों में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ फैकल्टी, यूनिवर्सिटी के चांसलर, यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग और शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ शामिल हैं।

केस टाइटल: प्रिंस सिंह बनाम लॉ फैकल्टी, दिल्ली यूनिवर्सिटी और अन्य।

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