दिल्ली सरकार ने किसान आंदोलन और दिल्ली दंगों के मामलों में अपनी पसंद के अभियोजकों की नियुक्ति को लेकर LG के खिलाफ दायर याचिका वापस ली

Update: 2025-05-19 06:51 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को तत्कालीन आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार द्वारा उपराज्यपाल (Delhi LG) के आदेश के खिलाफ दायर याचिका वापस लेने की अनुमति दी। इस याचिका में किसान आंदोलन और दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों में बहस करने के लिए अपनी पसंद के अभियोजकों के एक पैनल को नियुक्त करने के कैबिनेट के फैसले को पलट दिया गया था।

चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई की, जिसका नेतृत्व अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) कर रही है, जिसमें 2021 में दायर याचिका को वापस लेने की मांग की गई थी।

न्यायालय ने कहा,

“यह रिट याचिका को वापस लेने की मांग करने वाला आवेदन है। याचिका को वापस लिए जाने के रूप में खारिज किया जाता है।”

एलजी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय जैन ने उक्त आवेदन पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

आवेदन में नोटिस अगस्त, 2021 में जारी किया गया था।

दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस की सिफारिशों को खारिज कर दिया था। अपनी पसंद का एक पैनल नियुक्त किया था। बाद में LG ने संविधान के अनुच्छेद 239-एए(4) के प्रावधान के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया और राष्ट्रपति के निर्णय तक उक्त मामलों का संचालन करने के लिए दिल्ली पुलिस के चुने हुए वकीलों को एसपीपी के रूप में नियुक्त किया।

अपनी याचिका में दिल्ली सरकार ने तर्क दिया कि 'एसपीपी की नियुक्ति' नियमित मामला है और कोई असाधारण मामला नहीं है, जिसके लिए राष्ट्रपति को संदर्भित किया जा सके।

यह भी आरोप लगाया गया कि एलजी नियमित रूप से एसपीपी की नियुक्ति में हस्तक्षेप कर रहे हैं। निर्वाचित सरकार को कमजोर कर रहे हैं, जो अनुच्छेद 239-एए के खिलाफ भी है।

याचिका में कहा गया कि जांच एजेंसी, यानी दिल्ली पुलिस द्वारा एसपीपी की नियुक्ति एसपीपी की स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करती है। निष्पक्ष सुनवाई की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करती है।

केस टाइटल: जीएनसीटीडी बनाम एलजी

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