सजा पर सुनवाई- सेक्‍शन 235(2) सीआरपीसी का पालन न करना ट्रायल का महत्वपूर्ण चरण, न कि सेक्शन 465 के तहत उपचार योग्य अनियमितताः गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2022-02-08 14:08 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक आपराधिक अपील पर कहा कि जब निचली अदालत किसी आरोपी को दोषी ठहराती है तो उसे सीआरपीसी की धारा 235 (2) के तहत अनिवार्य सजा पर सुनवाई का अवसर देना होता है।

प्रावधान निर्धारित करता है: यदि अभियुक्त को दोषी ठहराया जाता है तो जज जब तक कि वह धारा 360 के प्रावधानों के अनुसार आगे नहीं बढ़ता है, अभियुक्त को सजा के प्रश्न पर सुनेगा, और फिर कानून के अनुसार उसे सजा सुनाएगा।

हाईकोर्ट ने अलाउद्दीन मियां और अन्य बनाम बिहार राज्य, (1989) 3 एससीसी 5 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि धारा 235 (2) सीआरपीसी का दोहरा उद्देश्य नेचुरल जस्टिस के नियम का पालन करना है, यानी पहला दोषी व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना और दूसरा दी जाने वाली सजा को चुनने में अदालतों की मदद करना।

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि धारा 235 (2) सीआरपीसी के अनिवार्य प्रावधानों का पालन न करना एक महत्वपूर्ण चरण को "बाईपास" करने के बराबर है।

इस तरह का गैर-अनुपालन एक ट्रायल के तरीके के रूप में संहिता के व्यक्त प्रावधान की अवज्ञा का गठन करता है और इसका नतीजा यह होता है कि सजा खराब हो सकती है। इसे सीआरपीसी की धारा 465 के तहत सुसाध्य अनियमितता के रूप में नहीं माना जा सकता है।

यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता को सजा सुनाए जाने से पहले धारा 235 सीआरपीसी के तहत आवश्यक सुनवाई का एक उचित और पर्याप्त अवसर प्रदान करने के इस अनिवार्य वैधानिक प्रावधान का पालन करने में विफल रहा, इसलिए, मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया गया।

तदनुसार, आक्षेपित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप किया गया और आपराधिक अपील का निपटारा किया गया।

केस नंबर: Crl.Appeal 8/2020

केस शीर्षक: श्री जोथापुइया बनाम मिजोरम राज्य

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Gau) 9

कोरम: जस्टिस नेल्सन सेलो और जस्टिस मार्ली वानकुंग

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