'दहेज हत्या के मामलों की सभी संभावित कोणों से जांच करें; यह बताएं कि मामला किस तरह धारा 302, 304-बी या 306 आईपीसी के अंतर्गत आता है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को निर्देश दिया

Update: 2024-06-29 04:20 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे जांच अधिकारियों को दहेज हत्या से संबंधित मामलों में "व्यापक जांच" करने और विवाहित महिला की मृत्यु (उसकी शादी के 7 साल के भीतर) की हर संभव कोण से जांच करने का निर्देश दें।

जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने निर्देश दिया,

"मामले के जांच अधिकारी को व्यापक जांच करनी चाहिए और जांच के दौरान सामग्री एकत्र करनी चाहिए ताकि धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत अपनी रिपोर्ट को उचित ठहराया जा सके कि क्या महिला की ऐसी अप्राकृतिक मौत धारा 302 आईपीसी के दायरे में आती है या यह स्पष्ट रूप से दहेज हत्या है, जो धारा 304बी आईपीसी के तहत दंडनीय है या यह आत्महत्या का मामला है जो धारा 306 आईपीसी के तहत दंडनीय है, जहां महिला की मौत उसके पति या ससुराल वालों द्वारा किसी तरह के उकसावे के कारण हुई।"

न्यायालय ने आगे इस बात पर जोर दिया कि मामले के जांच अधिकारियों को धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत अपनी रिपोर्ट में अभियुक्तों के खिलाफ जांच के दौरान उनके द्वारा एकत्र की गई सामग्री के बारे में यह स्पष्ट करना चाहिए कि महिला की उक्त अप्राकृतिक मृत्यु धारा 302 आईपीसी के दायरे में आती है या धारा 304बी आईपीसी के दायरे में आती है या धारा 306 आईपीसी के दायरे में आती है।

इस संबंध में न्यायालय ने जसविंदर सैनी बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का भी हवाला दिया, जिससे इस बात पर जोर दिया जा सके कि जांच एजेंसी को केवल एफआईआर से निर्देशित नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें महिला की हत्या के मामले की हर संभव कोण से जांच करनी चाहिए। उसके बाद धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।

न्यायालय ने जांच अधिकारियों को महिला की मौत की सभी संभावित कोणों से जांच करने का निर्देश दिया। इसमें यह जांच करना शामिल है कि क्या उसकी मौत उसके पति और ससुराल वालों द्वारा हत्या (धारा 302 आईपीसी) के कारण हुई, या उनके द्वारा उकसाने या उकसाने के कारण आत्महत्या (धारा 306 आईपीसी) थी, या यह दहेज हत्या का मामला है (धारा 304 बी आईपीसी)।

इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने राज्य में ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा दहेज हत्या और दहेज से संबंधित अमानवीय व्यवहार से जुड़े मामलों में बिना किसी सहायक सामग्री के आईपीसी की धारा 302 (हत्या) को नियमित और यांत्रिक रूप से जोड़ने पर भी आपत्ति जताई।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायालयों के लिए उचित तरीका यह जांचना है कि क्या जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य, प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य, प्रथम दृष्टया धारा 302 आईपीसी के तहत आरोप जोड़ने का समर्थन करते हैं और उसे उचित ठहराते हैं। उसके बाद ही ट्रायल जज को हत्या का आरोप तय करना चाहिए।

अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में धारा 302 आईपीसी के तहत आरोप मुख्य आरोप होगा, न कि वैकल्पिक आरोप, जैसा कि राज्य में ट्रायल कोर्ट ने दहेज हत्या का आरोप तय करते समय गलत तरीके से मान लिया था।

अदालत ने स्पष्ट किया,

"यदि अभियुक्त के खिलाफ हत्या का मुख्य आरोप ट्रायल में साबित नहीं होता है तो अदालत केवल यह निर्धारित करने के लिए साक्ष्य पर गौर करेगी कि क्या आईपीसी की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या का वैकल्पिक आरोप स्थापित होता है या नहीं।"

केस टाइटल- राममिलन बुनकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और संबंधित अपील 2024 लाइव लॉ (एबी) 413

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