'किसी अन्य विवाद को घरेलू हिंसा की शिकायत में बदलना आम बात हो गई है': केरल हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेटों से सावधानी बरतने को कहा

Update: 2023-01-06 01:49 GMT

केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत किसी भी प्रकार की राहत पाने के लिए घरेलू संबंधों का होना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने कहा कि अन्य विवादों को भी घरेलू हिंसा की शिकायतों में बदल देना आम बात होती जा रही है।

अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेटों को ऐसे मामलों में कैजुअल और मैकेनिकल तरीके से समन जारी नहीं करना चाहिए। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को फैसले की प्रति राज्य के सभी मजिस्ट्रेटों को भेजने का निर्देश दिया।

ज‌स्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि मजिस्ट्रेट को प्रतिवादी को समन जारी करने से पहले आरोपों की जांच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह डीवी एक्ट के दायरे में आता हो और कानून को शिकायतकर्ता के हाथों उत्पीड़न का उपकरण बनाने से रोका जा सके।

अदालत ने कहा कि यदि एप्‍लीकेशन घरेलू हिंसा अधिनियम के दायरे में नहीं आता है तो अनिवार्य रूप से इसे दहलीज पर ही खारिज कर दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, शिकायतकर्ता को या तो संरक्षण अधिकारी या पीड़ित व्यक्ति होना चाहिए।

अदालत ने एक नियोक्ता और उसकी पत्नी की ओर से दायर याचिका पर यह टिप्पणी की, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत उनकी एक पूर्व कर्मचारी ने आपराधिक कार्यवाही शुरू करवाई थी। पूर्व कर्मचारी ने न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट, अडूर में 6 व्यक्तियों के खिलाफ डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज कराई ‌थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता 'पीड़ित व्यक्ति' नहीं है, जैसा कि डीवी एक्ट की धारा 2 (ए) के तहत परिभाषित किया गया है और यहां तक कि दायर आवेदन में भी, उसके और याचिकाकर्ताओं के बीच कोई घरेलू संबंध नहीं है और इसलिए, डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि डीवी एक्ट के पीछे विधायिका की मंशा निश्चित रूप से हर पीड़िता को एक मंच और उपाय प्रदान करना नहीं है, भले ही अपराधी के साथ उनका संबंध या शिकायत की प्रकृति कुछ भी हो।

इसने कहा कि डीवी एक्ट के प्रावधानों को केवल एक पीड़ित व्यक्ति ‌ही लागू कर सकता है, जिसे किसी भी ऐसी महिला के रूप में परिभाषित किया गया है, जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में हो या रही हो और जो घरेलू हिंसा के किसी भी कार्य का प्रतिवादी पर लगाती हो।

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि डीवी एक्ट की धारा 12 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक पीड़ित व्यक्ति या एक संरक्षण अधिकारी या पीड़ित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति अधिनियम के तहत एक या अधिक राहत संबंधी आवेदन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर सकता है।

न्यायालय ने कहा कि एक व्यथित पत्नी या विवाह की प्रकृति के रिश्ते में रहने वाली महिला सदस्य भी पति या पुरुष साथी के किसी रिश्तेदार के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है।

कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी दो पारिवारिक मित्रों का एक साथ रहना, जो रक्त संबंध, विवाह, गोद लेने या संयुक्त परिवार के सदस्यों के रूप में संबंधित नहीं हैं, घरेलू संबंध बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

जस्टिस एडप्पागथ ने कहा कि कई याचिकाएं दायर की जाती हैं, जिसमें मांग की जाती है कि सीआरपीसी की धारा 482 को लागू करते हुए डीवी एक्ट के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही को इस आधार पर रद्द करने कर दिया जाए कि वे शिकायतें डीवी एक्ट के तहत टिकाऊ नहीं हैं।

"उन याचिकाओं से यह स्पष्ट है कि किसी अन्य विवाद को घरेलू हिंसा की शिकायत में बदलना आम प्रैक्टिस बन गई है....इस तरह के आवेदनों में प्रतिवादी को यह सुनिश्चित किए बिना नोटिस जारी की जाती है कि क्या शिकायतकर्ता महिला प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में है, या रही है?"

मामले के तथ्यों पर, अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा निचली अदालत के समक्ष दायर आवेदन को बरकरार नहीं रखा जा सकता है क्योंकि शिकायत में इसे डीवी एक्‍ट के दायरे में लाने के लिए बिल्कुल भी तर्क नहीं दिया गया है।

अदालत ने कहा कि हालांकि अन्य प्रतिवादी उसके समक्ष नहीं हैं, उनके खिलाफ कार्यवाही को भी रद्द किया जा सकता है क्योंकि शिकायत डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।

केस टाइटल: राजेश और अन्य बनाम स्टेशन हाउस अधिकारी और अन्य।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (केरल) 8

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