ज्ञानवापी मस्जिद विवाद| हिंदू चिन्हों/प्रतीकों के संरक्षण, 'नमाज अदा करने वालों' की संख्या सीमित करने के लिए वाराणसी कोर्ट में नया आवेदन
वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के कुछ क्षेत्रों को "सील और संरक्षित" करने के लिए आवेदन दायर किया गया है।
जिला जज के समक्ष दायर आवेदन में मस्जिद परिसर में मौजूद हिंदू चिन्हों और प्रतीकों को संरक्षित करने की मांग की गई है, ताकि "अंजुमन मस्जिद कमेटी और नमाजी उन्हें कोई नुकसान न पहुंचा सके।"
आवेदन में संबंधित प्रतिवादी अधिकारियों को विवादित स्थल पर नमाज अदा करने वालों की संख्या को सीमित करने और विनियमित करने के लिए एक नियम बनाने का निर्देश देने और अंजुमन समिति को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर किसी भी संरचना को रंगने और पोतने से परहेज करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
यह आवेदन इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उस जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति देने के तीन दिन बाद दायर किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को वाराणसी के एएसआई सर्वेक्षण आदेश को प्रभावित किए बिना पूरे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को सील करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
सीपीसी के आदेश 39 नियम 1 के तहत दायर आवेदन, राखी सिंह (एडवोकेट सौरभ तिवारी और अनुपम द्विवेदी के माध्यम से) ने श्रृंगार गौरी पूजा मुकदमा 2022 (वर्तमान में वाराणसी न्यायालय के समक्ष लंबित) में दायर किया है।
यह मुकदमा पिछले साल 4 हिंदू महिला उपासकों (सिंह सहित) ने मस्जिद परिसर के अंदर साल भर पूजा करने की मांग के लिए दायर किया था।
आवेदन में यह दावा किया गया है कि विवादित स्थल (सेटलमेंट प्लॉट नंबर 9130 वार्ड और पीएस- दशाश्वमेध, जिला वाराणसी) पर एक भव्य मंदिर हुआ करता था, जिसमें ब्रह्मांड के विधाता भगवान शिव ने लाखों साल पहले स्वयं "ज्योतिर्लिंग" की स्थापना की थी। उक्त मंदिर को वर्ष 1669 में "क्रूर इस्लामी" शासक औरंगजेब ने क्षतिग्रस्त/नष्ट कर दिया था।
आवेदन में आगे कहा गया है कि उक्त मंदिर को नष्ट करने के बाद, मुसलमानों ने अनाधिकृत रूप से मंदिर परिसर में अतिक्रमण किया और एक सुपर स्ट्रक्चर बनाया, जिसे वे "कथित ज्ञानवापी मस्जिद" कहते हैं, जबकि संपत्ति देवता में निहित थी और वह न तो वक्फ संपत्ति थी और न ही हो सकती है।
आवेदन में यह भी तर्क दिया गया है कि विवादित संपत्ति प्राचीन काल से देवता में निहित रही है और यदि कोई व्यक्ति या लोग जबरन और कानून के अधिकार के बिना उस संपत्ति के भीतर या किसी विशेष स्थान पर नमाज पढ़ते हैं, तो उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता है।
इसके अलावा, आवेदन में यह तर्क देने के लिए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर कुछ साक्ष्यों, दीवारों पर चिन्ह/प्रतीकों और खंभों का हवाला दिया गया है कि ये पुराने हिंदू मंदिर का हिस्सा हैं और वर्तमान संरचना पुराने मंदिर के चबूतरे और मंदिर संरचना के आधार पर खड़ी है।
इस संबंध में, आवेदन में एक एडवोकेट कमीशन (जिसने पिछले साल मई में विवादित संपत्ति का सर्वेक्षण किया था) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि इसमें हिंदू धर्म के विभिन्न चिह्न जैसे त्रिशूल, स्वस्तिक, कमल और अन्य हिंदू चिह्न पाए गए जो विवादित स्थल पर हिंदू मंदिर का अस्तित्व साबित करने के लिए "पर्याप्त हैं"
गौरतलब है कि आवेदन में दावा किया गया है कि प्रतिवादी नंबर 4 (अंजुमन मस्जिद कमेटी) ज्ञानवापी परिसर में मौजूद हिंदू चिन्हों और प्रतीकों को नष्ट करने और नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है, जो वर्तमान मुकदमे के परीक्षण और निर्णय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सबूत है।
इस पृष्ठभूमि में, आवेदन ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के कुछ क्षेत्रों को "सील और संरक्षित" करने का निर्देश देने की मांग करता है, जहां ऐसे सभी हिंदू चिन्ह और प्रतीक मौजूद हैं, जैसा कि पिछले साल एडवोकेट कमिश्नर के सर्वेक्षण में पाया गया था और साथ ही जो भी हिंदू चिन्ह और प्रतीक एएसआई के चल रहे सर्वे के दौरान मिले हैं।
संबंधित समाचार में, वाराणसी जिला न्यायाधीश ने इस सप्ताह की शुरुआत में इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के चल रहे एएसआई सर्वेक्षण के बारे में कोई भी 'अनौपचारिक समाचार' प्रकाशित करने से रोक दिया था।
कोर्ट ने 2022 के श्रृंगार गौरी पूजा मुकदमे के दोनों पक्षों और एएसआई अधिकारियों को सर्वेक्षण के संबंध में मीडिया में कोई भी बयान देने से परहेज करने का निर्देश दिया है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि एएसआई वर्तमान में वाराणसी जिला न्यायाधीश के 21 जुलाई के आदेश के अनुसार वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर रहा है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर किया गया था या नहीं। सर्वे का आज लगातार आठवां दिन है।