गुजरात हाईकोर्ट में 'निजता के अधिकार' का आह्वान करते हुए गुजरात शराब निषेध को चुनौती दी गई
गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को गुजरात निषेध अधिनियम, 1949 के तहत राज्य में शराब के निर्माण, बिक्री और खपत पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।
याचिका में उक्त कानून को 'मनमानापन प्रकट करने' और 'निजता के अधिकार' के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ मंगलवार को भी मामले की सुनवाई जारी रखेगी।
सोमवार को महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने चुनौती पर प्रारंभिक आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट बॉम्बे और अन्य राज्य बनाम एफ एन बलसारा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपील में नहीं बैठ सकता है, जहां 1949 के अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा गया था।
उन्होंने कहा,
"हम 71 वें वर्ष में हैं, जब से पूरे अधिनियम में कुछ धाराओं को छोड़कर 25 मई 1951 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया था। इसलिए, कोई भी अधिकार के साथ कह सकता है- उस तारीख से निर्णय लागू रहा है और हस्तक्षेप के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।"
गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर अधिनियम को चुनौती दी है कि कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2017 के बाद अधिनियम को चुनौती देने के लिए दो नए आधार निर्धारित किए गए हैं।
पहला नया आधार शायरा बानो, नवतेज सिंह जौहर और जोसेफ शाइन के मामलों में रखी गई 'मनमानापन प्रकट' है।
दूसरा आधार 'निजता के अधिकार', 'अकेले रहने का अधिकार' और 'किसी के घर की चार दीवारों के भीतर शराब का सेवन करने का अधिकार' पर आधारित है - जो उनका तर्क है कि निजता के अधिकार का एक पहलू है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में मान्यता दी थी।
त्रिवेदी ने तर्क दिया,
"क्या ऐसी याचिका हाईकोर्ट के समक्ष लेने के लिए उपलब्ध है? उत्तर नहीं है। अब अतिरिक्त आधार हो सकते हैं। ऐसे नए आधार हो सकते हैं जिनके बारे में कोई सोच सकता है, लेकिन यह हाईकोर्ट के समक्ष किसी कानून को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकता है। न्यायालय जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही बरकरार रखा है।"
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बाध्य है।
उन्होंने सरजूभैया माथुरभैया कहार बनाम पुलिस उपायुक्त के मामले का हवाला दिया, जहां गुजरात हाईकोर्ट ने बॉम्बे पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 और 59 की वैधता पर इस आधार पर फिर से विचार करने से इनकार कर दिया कि चुनौती के लिए एक नया आधार बाद में उभरा है। .
"यह इस न्यायालय के लिए इस याचिका को स्वीकार जाने के लिए सही नहीं है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने धारा की वैधता पर बात की है और यह संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत कानून है। इसे इस न्यायालय द्वारा इस आधार पर अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 21 के आलोक में आक्षेपित धाराओं की वैधता का ट्रायल करने का कोई अवसर नहीं था।
हाईकोर्ट ने कहा था,
सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसलों में किए गए दृष्टिकोण के आधार पर भी चुनौती का एक नया आधार इस मामले में याचिकाकर्ता को इस न्यायालय के समक्ष उपलब्ध नहीं हो सकता है।"
त्रिवेदी ने कहा कि दो धाराओं 24 (1) (बी) और 40 ए को छोड़कर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू अधिनियम के सभी प्रावधानों पर विचार किया गया है और उन्हें हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
दूसरी ओर वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर ठाकोर ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती के तहत प्रावधानों की वैधता सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती के अधीन नहीं थी।
उन्होंने कहा,
"उनके द्वारा उद्धृत फैसले उन मामलों में पारित किए गए जहां समान प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। यहां ऐसा नहीं है।"
बेंच ने मामले को मंगलवार को सुनवाई के लिए रखा है। इस बीच याचिकाकर्ताओं को राज्य पर अपने तर्कों की प्रति देने का निर्देश दिया गया है।
आक्षेपित अधिनियम का अध्याय 3 अधिनियम की धारा 12, 13 और 13बी के तहत शराब के निर्माण, बिक्री और उपभोग पर प्रतिबंध से संबंधित है।
अध्याय 4 नियंत्रण, विनियमन और छूट प्रदान करता है। इनमें, अन्य बातों के साथ, धारा 40 अस्थायी निवासी परमिट, धारा 40 स्वास्थ्य परमिट, धारा 40बी: आपातकालीन परमिट, धारा 41: विदेशी संप्रभुओं के लिए विशेष परमिट आदि, धारा 46: आगंतुक परमिट, धारा 46ए: पर्यटक का परमिट, धारा 47 अंतरिम परमिट शामिल हैं।
त्रिवेदी ने तर्क दिया है कि अधिनियम का मुख्य उद्देश्य (i) बड़े पैमाने पर लोगों के स्वास्थ्य स्तर को ऊपर उठाना है; और (ii) मादक शराब के सेवन को विनियमित करके सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना।
केस शीर्षक: राजीव पीयूष पटेल बनाम गुजरात राज्य