प्रायवेट स्कूल मान्यता : योग्य कर्मचारियों को 'सरप्लस' घोषित करने और उन्हें अन्य स्कूलों में लेने के लिए डीईओ को कदम उठाने होंगे: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जहां किसी भी निजी स्कूल की मान्यता रद्द की जाती है, वहां जिला शिक्षा अधिकारी को योग्य स्कूल स्टाफ को 'सरप्लस' घोषित करने और उन्हें अन्य स्कूलों में लेने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
यह स्पष्टीकरण राज्य की नीति पर आया है कि जब भी निजी माध्यमिक विद्यालय के कर्मचारियों को कक्षाएं बंद होने या स्कूल बंद होने के कारण छंटनी की आवश्यकता होती है, यदि वे जीआर में निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं तो उन्हें वास्तविक समाप्ति का सामना करने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें सरप्लस घोषित करके गुजरात सरकार उनकी सेवाओं को सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें किसी अन्य सहायता प्राप्त रजिस्टर्ड निजी माध्यमिक विद्यालय में लिया जाए।
आमतौर पर, गुजरात माध्यमिक शिक्षा विनियम, 1974 की धारा 10-ए के तहत स्कूल प्रबंधन को डीईओ को लिखित में प्रस्ताव भेजना होगा। उस प्रस्ताव पर डीईओ प्रभावित कर्मचारियों को सरप्लस घोषित करने का आदेश पारित करेगा। हालांकि, यह वर्ग या वर्गों में कमी के कारण उत्पन्न होने वाली स्थिति में होगा।
वर्तमान मामले में अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त होने का झूठा दावा करने और अनुदान सहायता का लाभ लेने के लिए स्कूल की मान्यता रद्द करने के कारण शिक्षकों की छंटनी की जा रही है। स्कूल के खिलाफ 22 करोड़ रुपये की वसूली का आदेश भी पास हुआ है।
राज्य सरकार ने गुजरात माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ट्रिब्यूनल के आदेश का विरोध करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने राज्य के अधिकारियों को शिक्षकों की सेवाओं के लिए मान्यता रद्द करने की अवधि और उनको किसी अन्य स्कूल में लिए जाने तक उन्हें वेतन देने का निर्देश दिया था।
राज्य ने तर्क दिया कि प्रस्ताव को स्कूल प्रबंधन द्वारा स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, इसलिए डीईओ ने उस प्रस्ताव पर विचार नहीं किया, जिसे स्कूल के शिक्षकों द्वारा स्वयं अग्रेषित किया गया।
जस्टिस एवाई कोगजे की पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण ने शिक्षकों के दावों पर सही विचार किया है।
कोर्ट ने कहा,
"विभाग की यह स्थापित प्रथा है कि ऐसे मामलों में जहां बोर्ड द्वारा स्कूल का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया हो तो कर्मचारियों को सरप्लस घोषित करने की प्रक्रिया डीईओ द्वारा की जाती है। इसमें मामले को देखते हुए डीईओ का यह निवेदन कि कर्मचारियों को सरप्लस घोषित करने के लिए प्रबंधन की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं है, इसलिए उन्हें सरप्लस घोषित नहीं किया गया, मान्य नहीं है। विभाग और हाईकोर्ट में मेरे विचार में कर्मचारियों को अधिशेष घोषित करने के लिए कदम नहीं उठाने के लिए एक ठोस आधार नहीं माना जा सकता।"
यह नोट किया गया कि अक्टूबर, 2004 से कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया। उन्होंने अपना वेतन जारी करने के लिए कई अभ्यावेदन दिए हैं, लेकिन इस तरह के अनुरोधों के बावजूद डीईओ न उनके वेतन जारी करने या उन्हें सरप्लस घोषित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।
कोर्ट ने कहा कि अगर डीईओ ने समय पर आदेश पारित कर उन्हें अब्सोर्ब घोषित कर दिया होता तो उन्हें तुरंत कहीं और समाहित कर लिया जाता। इतने लंबे समय तक वेतन का भुगतान न करने का सवाल ही नहीं उठता। यदि डीईओ सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार अपने दम पर 08.12.04 के बाद उचित समय के भीतर आदेश पारित किया होता तो शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की इस कठिनाई को टाला जा सकता था।
उपरोक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।
केस नंबर: सी/एससीए/6808/2008
केस टाइटल: गुजरात राज्य और 2 अन्य बनाम रवींद्र एस शुक्ला और 22 अन्य (ओं)
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