'बैंक के पास गिरवी रखी गई संपत्तियों का प्रतीकात्मक कब्जा है': गुजरात हाईकोर्ट ने 10 करोड़ रुपए का लोन नहीं चुकाने पर 2016 का जमानत आदेश रद्द करने से इनकार किया

Update: 2022-07-07 05:48 GMT

गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 467, 468 और 471 सपठित धारा 406 और 420 के तहत अपराधों के लिए प्रतिवादी-अभियुक्त की जमानत रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इस आधार पर जमानत रद्द करने से इनकार किया कि आवेदक-बैंक ने बहुत पहले ही संपत्तियों पर 'प्रतीकात्मक कब्जा' ले लिया था। हालांकि, इन संपत्तियों के संबंध में बैंक लगभग छह वर्षों में आगे नहीं बढ़ा है।

हाईकोर्ट ने महसूस किया कि उसे सत्र न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जिसने 2016 के आदेश के तहत आरोपी को जमानत दी थी।

जस्टिस विपुल पंचोली ने कहा कि प्रतिवादी नंबर दो के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि आरोपी ने 10,00,00,000 रुपये का लोन लिया था और एफआईआर दर्ज करने की तिथि पर 8,42,93,640 रुपये की राशि बकाया थी। प्रतिवादी द्वारा यह विरोध किया गया कि अदालत में कुछ संपत्तियों को पुनर्भुगतान के उद्देश्य से बेचने के लिए अंडरटेकिंग दिया गया था जिसे सत्र न्यायालय ने कुछ शर्तों पर अग्रिम जमानत दी थी। कोर्ट के इस आदेश को पहले ही अमल में लाया जा चुका है, इसलिए आवेदन को खारिज किया जाना चाहिए।

यह भी कहा गया कि जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट पहले ही दाखिल की जा चुकी है। अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष अनुपूरक आरोप पत्र लंबित है। एक और तर्क यह था कि मध्यस्थ द्वारा अंतिम आदेश पारित किया जाएगा। साथ ही संपत्तियों की बिक्री के प्रतिफल का भुगतान आवेदक-बैंक को किया जाएगा। इसलिए, सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करके आवेदक-बैंक का संपत्तियों पर 'प्रतीकात्मक कब्जा' है।

इन तर्कों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी-अभियुक्त को 2016 के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया था, इसलिए आक्षेपित आदेश 'लागू, निष्पादित और समाप्त' किया गया। आवेदक-बैंक द्वारा संपत्तियों की बिक्री के लिए वचनबद्धता के संबंध में हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी ने किसी भी निर्धारित अवधि के भीतर किसी विशेष राशि का भुगतान करने का वचन नहीं दिया था।

जस्टिस पंचोली ने कहा:

"यहां यह ध्यान देने योग्य है कि आवेदक बैंक ने पहले ही सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू कर दी है और कुछ इकाइयों / संपत्तियों का प्रतीकात्मक कब्जा पहले ही आवेदक-बैंक को दिया जा चुका है। हालांकि, वर्तमान की पेंडेंसी के दौरान कार्यवाही यानी लगभग छह वर्षों की अवधि के लिए आवेदक-बैंक ने उस संबंध में आगे नहीं बढ़ाया है। इस प्रकार, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आवेदक-बैंक ने पहले ही उचित कार्यवाही शुरू कर दी है, संबंधित न्यायालय तथ्यों और उसके सामने रखी गई सामग्री पर विचार करने के बाद उचित आदेश पारित करेगा।"

इस आधार पर बेंच ने अर्जी खारिज कर दी।

केस टाइटल: नासिक मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम वी/एस गुजरात राज्य और एक अन्य

केस नंबर: आर/सीआर.एमए/33603/2016

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