गुजरात हाईकोर्ट ने रिट क्षेत्राधिकार में मां को चार साल की बच्चे की कस्टडी दी, अनुचित व्यवहार का हवाला देते हुए छह महीने तक पिता को मुलाकात करने से रोका

Update: 2022-05-14 07:54 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने बच्चे की बेहतर परवरिश सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया और चार साल के लड़के को उसकी मां (याचिकाकर्ता) को कॉर्पस की कस्टडी दी।

मामला यह है कि वैवाहिक विवाद के बाद बच्चे का पिता बच्चे को मां से दूर ले गया था।

जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस मौना एम भट्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद बच्चे के पिता द्वारा अदालत में अनियंत्रित माहौल बनाने के प्रयास को नोट किया। इस प्रकार, कोर्ट ने छह महीने की अवधि के लिए पिता के मुलाक़ात के अधिकारों को निलंबित कर दिया।

आदेश में कहा गया,

"हम मां को बच्चे की कस्टडी देते हुए इस याचिका की अनुमति देते हैं। बच्चे को शांति से मां को सौंप दिया जाए ... पिता को मिलने का अधिकार होगा ... फैसला सुनाए जाने के बाद बच्चे के प्रतिवादी-पिता ने कोर्ट परिसर में अनियंत्रित माहौल बनाने की कोशिश की। इससे कैंपस प्रशासन के लिए असहनीय स्थिति पैदा हो रही है। उसके डराने वाले व्यवहार को देखते हुए हमने उसके आज से छह महीने के लिए मुलाकात के अधिकार को निलंबित कर दिया।"

याचिकाकर्ता ने 2021 में अपना ससुराल छोड़ दिया था और अपने माता-पिता और अपने बेटे के साथ रह रही थी। उसने आरोप लगाया कि उसके पति ने पटाखे खरीदने के बहाने बच्चे को उससे ले लिया और बाद में बार-बार अनुरोध के बावजूद उसे उससे मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि युवा जोड़े मध्यस्थता के माध्यम से आपसी मतभेदों को सुलझाएं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 10वीं तक पढ़ाई की थी जबकि पति ने किसान रहते हुए बीबीए किया था। मध्यस्थता के दौरान एमिक्स क्यूरी ने पाया कि पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को फिर से शुरू नहीं करने पर बहुत स्पष्ट है।

एक स्पष्ट विवाद को देखते हुए बेंच ने यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य, 2020 AIJEL-SC 65636 का उल्लेख किया, जहां यह माना गया कि बच्चे के कल्याण का निर्णय करते समय यह केवल पति या पत्नी को ही ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए। अदालतों को कस्टडी के मुद्दे पर केवल इस आधार पर फैसला करना चाहिए कि बच्चे के सर्वोत्तम हित में क्या है। आगे यह कहा गया कि यदि माता-पिता में से किसी एक को किसी भी मुलाकात के अधिकार या बच्चे के साथ संपर्क से वंचित किया जाता है तो कारणों को निर्दिष्ट किया जाना चाहिए।

पीठ ने हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 की धारा 6 का भी अवलोकन किया, जिसमें कहा गया कि बच्चे को पांच साल से कम उम्र तक मां की कस्टडी में रखा जाना चाहिए। गीता हरिहरन (सुश्री) और एथेर बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और एक अन्य, 1999 2 एससीसी 228 में भी सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू अल्पसंख्यक अधिनियम की धारा 6 (ए) के प्रावधान के आधार पर मां को प्राथमिकता दी।

अधिनियम की धारा 7 का संदर्भ दिया गया जहां न्यायालय को संरक्षकता के संबंध में आदेश देने की शक्ति है और धारा 17 अभिभावक नियुक्त करने में न्यायालय के साथ विचार किए जाने वाले विचार हैं। नाबालिग बच्चों की हिरासत, भरण-पोषण और शिक्षा के संबंध में उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।

इन उदाहरणों और प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने बच्चे को मां की कस्टडी की अनुमति दी। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि बच्चे को एमिक्स क्यूरी की उपस्थिति में महिला कांस्टेबल सहित मां को शांतिपूर्वक कस्टडी में सौंप दिया जाए।

पहले व तीसरे शनिवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में मुलाकात के अधिकार के लिए ले जाकर पिता को मुलाक़ात का अधिकार दिया गया था। दूसरे और चौथे शनिवार को उन्हें माता के आवास पर जाने की अनुमति होगी। कोर्ट ने आगाह किया कि बच्चे को वापस करने में पिता की ओर से किसी भी तरह की चूक के गंभीर परिणाम होंगे।

केस टाइटल: पांचाल जलाकेबेन हार्दिकभाई डी/ओ संजयभाई भागुभाई पांचाल बनाम गुजरात राज्य

केस नंबर: आर/एससीआर.ए/12669/2021

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