गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 31 सप्ताह के गर्भ को टर्मिनेट करने की अनुमति देने से इनकार किया
गुजरात हाईकोर्ट ने एमटीपी बोर्ड की राय के मद्देनजर नाबालिग बलात्कार पीड़िता (लगभग 17 वर्ष की आयु) के 31 सप्ताह से अधिक के गर्भ को टर्मिनेट करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था को टर्मिनेट करना उचित नहीं है।
जस्टिस समीर जे दवे की पीठ ने राज्य सरकार को गुजरात राज्य की नीतियों के अनुसार लड़की को बच्चे के जन्म तक उपलब्ध सभी सुविधाओं का विस्तार करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।
पीठ ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि यदि पीड़िता जल्द से जल्द उसकी हकदार पाई जाती है तो विभिन्न प्रावधानों के तहत राज्य सरकार की मौजूदा नीतियों के अनुसार बलात्कार पीड़िता को मुआवजे का भुगतान करे।
यह आदेश पीड़ित लड़की के पिता द्वारा 29 सप्ताह के गर्भ को टर्मिनेट करने की मांग वाली याचिका में पारित किया गया।
उल्लेखनीय है कि यह आदेश अदालत द्वारा पीड़िता और आरोपी के बीच मामले में समझौता करने के विकल्प का पता लगाने के 3 दिन बाद आया। हालांकि, आरोपी द्वारा पीठ को सूचित करने के बाद कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसकी पत्नी शादी की उम्मीद कर रही है, बच्चे को जन्म देने के विचार को छोड़ दिया गया।
अदालत ने 15 जून को समझौते के लिए 'संभावनाओं' का पता लगाने के लिए बलात्कार के आरोपी को जेल से पेश करने का निर्देश दिया।
जस्टिस समीर जे. दवे की पीठ ने मौखिक रूप से यह कहते हुए टिप्पणी की,
'आरोपी कहां है? क्या समझौते का कोई मौका है?'
इसके साथ ही कोर्ट ने ने कहा कि उनके दिमाग में कुछ ऐसा है, जिसे वह प्रकट नहीं करना चाहते थे।
उल्लेखनीय है कि कोर्ट के 7 जून के आदेश के अनुसार, राजकोट अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने भ्रूण के टर्मिनेशन के खिलाफ अपनी राय देते हुए अपनी रिपोर्ट (8 जून को) प्रस्तुत की, जो उस समय 29 सप्ताह और 5 दिन की थी।
एमटीपी बोर्ड की उक्त रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, जिसमें पीड़ित लड़की की शारीरिक और मानसिक स्थिति में कोई असामान्यता नहीं पाई गई, अदालत ने राज्य सरकार को पूर्वोक्त निर्देश जारी करते हुए आवेदक को किसी भी समय, किसी भी कठिनाई के मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी।
पीठ ने आवेदक और पीड़ित लड़की की राजकोट में नारी संरक्षण गृह में तब तक रहने की इच्छा को भी ध्यान में रखा, जब तक कि वह बच्चे को जन्म नहीं दे देती। साथ ही महिला और बाल कल्याण विभाग, सचिवालय, गांधीनगर के सचिव के साथ-साथ अतिरिक्त प्रमुख सचिव, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग, गांधीनगर गुजरात राज्य की नीतियों के अनुसार उपलब्ध सभी सुविधाओं का विस्तार करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्देश दिया।
अदालत ने कहा,
"सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अंतर्गत समाज रक्षा के कानूनी सलाहकार, निदेशक विशाल एन. आचार्य को निर्देश दिया जाता है कि राज्य सरकार की प्रचलित नीतियों के अनुसार उपर्युक्त दोनों विभागों के समन्वय से इस मामले को देखें। पीड़िता के लिए यह भी खुला है कि जब भी वह नारी संरक्षण गृह, राजकोट कन्या शाला भवन, याग्निक रोड, राजकोट में रहने के लिए उपयुक्त पाएगी तो वह संबंधित अधिकारी को सूचित करेगी और संबंधित अधिकारी उसके रहने के लिए उचित कदम उठाएगी।“
कोर्ट ने संबंधित सरकारी विभागों को समय-समय पर अदालत के समक्ष प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश देते हुए आगे निर्देश दिया।
गौरतलब है कि यह वही मामला है, जिसमें 7 जून को बेंच ने मौखिक रूप से कहा था कि अतीत में 14-15 साल की लड़कियों के लिए शादी करना और 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म देना कैसे सामान्य बात थी।
7 जून को बलात्कार पीड़िता के पिता के वकील ने लड़की की कम उम्र को देखते हुए भ्रूण के मेडिकल टर्मिनेशन के लिए दबाव डाला।
इस पर जस्टिस समीर जे. दवे की खंडपीठ ने इस प्रकार टिप्पणी की:
“क्योंकि हम 21 वीं सदी में रह रहे हैं, अपनी मां या परदादी से पूछिए कि 14-15 अधिकतम उम्र (शादी करने के लिए) थी। बच्चा 17 साल की उम्र से पहले ही जन्म ले लेता था। लड़कियां लड़कों से पहले मैच्योर हो जाती हैं। 4-5 महीने इधर-उधर कोई फर्क नहीं पड़ता। आप इसे नहीं पढ़ेंगे, लेकिन इसके लिए एक बार मनुस्मृति जरूर पढ़ें।
अपीयरेंसः आवेदक की ओर से अधिवक्ता सिकंदर सैयद व इलिन सारस्वत, प्रतिवादी नंबर 2 के लिए एडवोकेट अस्मिता वी पटेल और प्रतिवादी नंबर 1 के लिए एपीपी जेके शाह
केस टाइटल- XYZ (माइनर) बनाम गुजरात राज्य
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