जीएसटी | अविवादित तथ्यों के मामलों को वैकल्पिक समाधान के फोरम में स्थानांतरित करने का कोई वास्तविक लाभ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-11-30 14:33 GMT

Allahabad High Court 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि कर मामले, जहां तथ्य निर्विवाद हैं और इसमें अधिकार क्षेत्र के मुद्दे और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन शामिल है, उन्हें प्राधिकरणों को नहीं सौंपा जा सकता है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने माना ‌कि जिन मामलों में न्यूनतम वैधानिक अनुपालन किया गया है, उन्हें आम तौर पर वैकल्पिक उपचार के मंचों पर भेज दिया जाता है।

मामले में जीएसटी प्राधिकरण ने कारण बताओ नोटिस की तारीख से पूर्वव्यापी प्रभाव से याचिकाकर्ता का पंजीकरण रद्द कर दिया था। न्यायालय ने कहा कि जीएसटी पंजीकरण रद्द करने का आदेश पूरी तरह से निरर्थक था क्योंकि आदेश में वैधानिक आवश्यकता का कोई उल्लंघन नहीं बताया गया था। न्यायालय ने पाया कि प्राधिकरण कर चालान के विवरण, जिस अवधि के लिए आईटीसी का गलत तरीके से लाभ उठाया गया था और अन्य विवरण का उल्लेख करने में विफल रहा।

कोर्ट ने कहा कि पंजीकरण रद्द करने से व्यावसायिक इकाई पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसका व्यवसाय बंद होने का प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कोई कर चालान जारी नहीं किया जा सकता है, और पंजीकरण रद्द होने पर कोई रिटर्न आसानी से दाखिल नहीं किया जा सकता है।

तदनुसार, न्यायालय ने इस निर्देश के साथ रिट याचिका का निपटारा किया कि याचिकाकर्ता के पंजीकरण का निलंबन एक महीने की अवधि के लिए लागू रह सकता है, जिसके दौरान प्रतिवादी प्राधिकारी पंजीकरण रद्द करने के लिए नया कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है।

केस टाइटलः हिंदुस्तान पेपर मशीनरी इंडस्ट्रीज बनाम कमिश्नर सीजीएसटी और 2 अन्य [रिट टैक्स नंबर - 1047 ऑफ 2023]

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