अनुकंपा नियुक्त‌ि से वंचित करने का पैमाना जेंडर नहीं: झारखंड हाईकोर्ट ने मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी को राहत दी

Update: 2022-08-16 05:58 GMT

झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी को राहत दी, जिसे झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड ने अनुकंपा नियुक्ति से वंचित कर दिया था।

जस्टिस एसएन पाठक ने कहा कि यह मामला एक उदाहरण है, जहां अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदक के साथ लिंग के आधार पर "भेदभाव" किया गया था।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसके दावे को खारिज करने वाला आक्षेपित आदेश लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, क्योंकि यदि मृतक कर्मचारी का बेटा अनुकंपा के आधार पर रोजगार के लिए विचार क्षेत्र में आता है तो इसका कोई कारण नहीं है कि बेटी, विवाहित है या या अविवाहित, उसे विचार क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए, यदि ऐसी बेटी पूरी तरह से मृत कर्मचारी पर निर्भर है।

अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता का दावा आवेदन जमा करने की तारीख से चार साल से अधिक समय के बाद खारिज कर दिया गया था, वह भी केवल उसकी विवाहित बेटी होने के आधार पर। यह प्रस्तुत किया गया कि हालांकि याचिकाकर्ता वर्तमान में विवाहित है, लेकिन अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपना आवेदन जमा करने के समय, वह अविवाहित थी, पूरी तरह से अपनी मां की आय पर निर्भर थी।

यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि यह प्रतिवादियों की गलती है कि मामले को चार साल से अधिक अविध के विलंब के बाद तय किया गया और प्रतिवादियों की ओर से मनमानी के इस कार्य के लिए, याचिकाकर्ता को पीड़ित नहीं किया जा सकता है या उस भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत दिए गए अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

प्रतिवादियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि 'विवाहित बेटियां' मृतक कर्मचारी के आश्रित की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती हैं और इसलिए याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई मामला नहीं बनता है।

न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों का यह कहना कि विवाहित पुत्री मृतक कर्मचारी के आश्रित की परिभाषा में नहीं आती है, हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक निर्णयों की श्रेणी द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर मान्य नहीं है।

कोर्ट ने मधुबाला सिन्हा बनाम मेसर्स सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य का उल्लेख किया, जहां यह निर्धारित किया गया था कि जब अविवाहित मरने वाले मृत कर्मचारी का भाई, यदि वह मृतक कर्मचारी पर पूर्ण रूप से आश्रित है, अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए विचार किए जाने का हकदार है तो इसका कोई कारण नहीं है कि बहन चाहे विवाहित हो या अविवाहित, ऐसे लाभों से वंचित रहे।

इसी तरह श्रीमती आशा पांडे बनाम कोल इंडिया लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित बेटी को आश्रित रोजगार के लिए विचार से बाहर करने वाली नीति को शून्य घोषित कर दिया था।

हाईकोर्ट ने तद्नुसार प्रतिवादी को निर्देश दिया कि वह अपनी मृत मां के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति के याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करे और उसे अनुकंपा के आधार पर नियुक्त करने के लिए उचित आदेश पारित करे, ताकि वह एकमात्र कमाने वाले की अचानक मृत्यु की स्थिति में अपना निर्वहन कर सके।

केस टाइटल: रीता गिरी बनाम झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड


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