'शिकायतकर्ता सहमति देने वाला पक्ष लगता है': गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 2016 POCSO मामले में दोषसिद्धि खारिज की

Update: 2023-06-27 06:44 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 4 के तहत आरोपी की सजा इस आधार पर रद्द कर दी कि शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान देते समय और ट्रायल कोर्ट के सामने गवाही देते समय दो अलग-अलग बयान दिए।

जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान में पीड़िता ने बस इतना कहा कि शादी के वादे पर दोषी अपीलकर्ता ने उसके साथ यौन संबंध बनाए और घर लौटने के बाद उसने उसे फोन करके बुलाया। लेकिन उसने उसे पहचानने से इनकार कर दिया।

अदालत ने कहा,

"ट्रायल कोर्ट में गवाही देते समय शिकायकर्ता ने कहा है कि हालांकि शादी के वादे पर अपीलकर्ता ने उसके साथ यौन संबंध बनाए, लेकिन उसने उसे कमरे से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी। उसने अदालत में यह भी कहा कि उसने शोर मचाया और घटना पर रोई, लेकिन अपीलकर्ता ने उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।'

अदालत ने कहा कि उसके पिता ने भी अपने साक्ष्य में कहा कि घटना के दो-तीन दिन बाद उसने अपीलकर्ता को फोन किया, लेकिन उसने उसे पहचानने से इनकार कर दिया और इसके बाद उसने पुलिस के समक्ष एफआईआर दर्ज कराई।

दोषसिद्धि रद्द करते हुए कहा गया,

"मेरे पास यह मानने के कारण हैं कि पीड़िता के साक्ष्य विश्वासनीय नहीं है। अभियोजन पक्ष के साक्ष्य उचित संदेह से परे यह साबित करने में विफल रहे कि अपीलकर्ता ने आपराधिक इरादे से पीड़ित के साथ यौन संबंध बनाए। ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता इस मामले में अपीलकर्ता के कृत्य को सहमति देने वाली पक्ष है।“

अदालत ने कहा,

अभियोजन पक्ष के साक्ष्य सभी उचित संदेह से परे अपीलकर्ता के खिलाफ अपराध साबित करने में विफल रहे।

ट्रायल कोर्ट ने 2019 में आरोपी को पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया और उसे जुर्माने के साथ 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

पुलिस के समक्ष की गई शिकायत के अनुसार, आरोपी-अपीलकर्ता ने 14 अगस्त, 2016 को शादी के वादे पर उसके साथ यौन संबंध बनाए। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में लड़की ने कहा कि अपीलकर्ता वह उसे पिछले एक साल से जानती है। अपने क्रॉस एक्जामिनेशन में अभियोजक ने कहा कि यद्यपि उसके पिता घर में मौजूद थे, लेकिन उसने उन्हें घटना के बारे में कुछ नहीं बताया।

उसने आगे स्वीकार किया कि उसने पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने कभी नहीं कहा कि अपीलकर्ता ने उसे कमरे से बाहर नहीं जाने दिया या अपीलकर्ता ने उसे शोर मचाने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।

केस टाइटल: असुरुद्दीन खान बनाम असम राज्य और अन्य।

कोरम: जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया

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