आरपी एक्ट की धारा 123 के तहत शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी देना 'भ्रष्ट आचरण' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक चुनावी उम्मीदवार की शिक्षा के बारे में गलत जानकारी को धारा 123 आरपी एक्ट की उपधारा (2) या (4) के अर्थ के तहत 'भ्रष्ट आचरण' नहीं कहा जा सकता है।
जस्टिस राज बीर सिंह की पीठ ने कहा कि उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता के बारे में जानकारी मतदाता के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी नहीं है और इस प्रकार, यह नहीं कहा जा सकता है कि उम्मीदवार के हलफनामे में उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता में कोई विसंगति या त्रुटि भ्रष्ट आचरण के समान होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक उम्मीदवार द्वारा बिजली के बकाया या आवास ऋण को छिपाने को भी आरपी अधिनियम की धारा 123 के अर्थ में एक भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जाएगा।
मामला
फरवरी 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव थे, जिसमें याचिकाकर्ता (अनुग्रह नारायण सिंह / भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) के साथ-साथ प्रतिवादी (हर्षवर्धन बाजपेयी / भाजपा) ने 262 इलाहाबाद शहर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और प्रतिवादी को निर्वाचित घोषित किया गया था।
चुनाव नतीजे के खिलाफ याचिकाकर्ता ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 80/81 के तहत मौजूदा चुनाव याचिका दायर की। आधार यह था कि उम्मीदवार ने लंबित बिजली बकाया और अन्य देनदारियों के बारे में तथ्यों को छुपाया और उसने अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रस्तुत की और इस प्रकार, यह भ्रष्ट आचरण के समान है।
चुनाव याचिका के लंबित रहने के दरमियान पांच साल की अवधि समाप्त होने के बाद फरवरी/मार्च 2022 में विधानसभा भंग हो गई, इसे देखते हुए, प्रतिवादी ने एक आवेदन दायर कर यह निर्देश देने की मांग की कि चुनाव याचिका को निष्फल के रूप में खारिज किया जा सकता है।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि प्रतिवादी ने आरपी एक्ट की धारा 123(2) और 123(4) के अर्थ के तहत भ्रष्ट आचरण किया था और इस प्रकार, चुनाव याचिका को आगे बढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि प्रतिवादी को छह साल की अवधि के लिए चुनाव लड़ने पर रोक समेत कई अयोग्यताओं का सामना करना पड़ सकता है।
न्यायालय की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब विवादित चुनाव की अवधि समाप्त हो गई है और उसके बाद, नए चुनाव हो चुके हैं और यदि याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप किसी भी भ्रष्ट आचरण के बरबर नहीं हैं, तो ऐसी चुनावी याचिका को खारिज किया जा सकता है।
मौजूदा मामले में, अदालत ने कहा कि प्रतिवादी (भाजपा उम्मीदवार) के खिलाफ आरोप यह था कि वह नामांकन के अपने हलफनामे में अपनी देनदारियों के साथ-साथ सही शैक्षणिक योग्यता का खुलासा करने में विफल रहा, और इस प्रकार उसने मतदाताओं के चुनावी अधिकारों के स्वतंत्र प्रयोग में हस्तक्षेप किया।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि उक्त विद्युत कनेक्शन प्रतिवादी के स्वामित्व वाली संपत्ति में स्थापित है, यह दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि प्रतिवादी ने कथित दायित्व को छुपाया है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दिखाया गया था जो यह दर्शाता हो कि प्रतिवादी के खिलाफ रिकवरी प्रमाण पत्र जारी किया गया था।
याचिकाकर्ता के इस तर्क के संबंध में कि प्रतिवादी द्वारा उसकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी दी गई थी, कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया AIR 2003 SC 2363 के साथ-साथ कुलदीप नैयर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, 2006 (7) SCC 1 और अन्य के मामलों में सुप्रीम कोर्ट फैसलों को ध्यान में रखा।
इस पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि चूंकि भ्रष्ट आचरण के आरोप इस प्रकार साबित नहीं हुए थे, इसलिए चुनाव याचिका को निष्फल होने के कारण खारिज किया जा सकता था, अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।
केस शीर्षक - अनुग्रह नारायण सिंह बनाम हर्षवर्धन बाजपेयी [चुनाव याचिका संख्या - 2017 का 10]
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 459