स्वतंत्रता सेनानी की विधवा/तलाकशुदा बेटियां, जिनकी कोई आय नहीं, उसकी पेंशन की हकदार, पूर्ण बहिष्कार अनुच्छेद 14 का उल्लंघनः कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को गृह मंत्रालय द्वारा जारी प्राधिकृत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा जारी केंद्रीय समान पेंशन के संवितरण के लिए दिशानिर्देशों के खंड 5.2.5 को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया है।
उन्होंने कहा, "विधवा / तलाकशुदा बेटियों का पूर्ण बहिष्कार, जिनमें वे भी शामिल हैं, जिनके पास भरणपोषण की व्यक्तिगत आय नहीं है, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण उल्लंघन है, जिसके तहत सभी नागरिकों की सामनता सुनिश्चित की जाती है।"
जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा, ".. विधवा / तलाकशुदा बेटियों का पूर्ण बहिष्कार, यहां तक कि उनका, जिनके पास भरणपोषण की कोई व्यक्तिगत आय नहीं है, यह अनुच्छेद 14 का पूर्ण उल्लंघन है....वर्तमान मामले में, वर्गीकरण लैंगिक पूर्वाग्रह से भी बदतर है, क्योंकि अविवाहित बेटियों को योजना में शामिल किया गया है, लेकिन विधवा/तलाकशुदा बेटियों को....जिनके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, को बाहर रखा गया है। उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, बेटियां उत्तराधिकारी के के रूप में मृतक की संपत्ति की हकदार हैं...."
पीठ ने यह टिप्पणी केंद्रीय सम्मान पेंशन योजना के तहत स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन के संवितरण के लिए लागू योजना के खंड 5.2.5 के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई पर की।
मामले के तथ्य के अनुसार, याचिकाकर्ता मृतक स्वतंत्रता सेनानी की बेटी हैं। 4 दिसंबर 2012 को अपने पिता की मृत्यु तक वह योजना के तहत पेंशन प्राप्त कर रही थी।
19 मार्च, 1999 को याचिकाकर्ता ने तलाक की एक डिक्री प्राप्त की था और तब से अपने बेटे के साथ अपने पैतृक घर पर रह रही थी। तलाकशुदा महिला होने के नाते, वह अपने पिता पर निर्भर थी क्योंकि उसने पति से भरणपोषण का अधिकार छोड़ दिया था।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि पिता के निधन के बाद, उसकी विधवा मां ने पेंशन के अनुदान के लिए आवेदन किया, हालांकि प्रतिनिधित्व लंबे समय तक लंबित रखा गया था। मां की 2019 में मृत्यु हो गई।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि खंड 5.2.5 विधवा / तलाकशुदा बेटियों को पात्रता से बाहर कर देती है, हालांकि "अविवाहित" बेटियों को शामिल किया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, ऐसा विवेक बिना किसी उचित आधार के है और संविधान के अनुच्छेद 39 के साथ-साथ अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन करता है।
यूनियन ऑफ इंडिया के अनुसार, यह प्रस्तुत किया गया था कि विधवा और तलाकशुदा बेटी खुद भरणपोषण में सक्षम है, क्योंकि उन्हें विभिन्न कानूनों के तहत पर्याप्त लाभ प्रदान किए गए हैं, जो अविवाहित बेटी को उपलब्ध नहीं हैं। इस प्रकार, विधवा और तलाकशुदा बेटियों और अविवाहित बेटिययों के बीच वर्गीकरण उचित हैं।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने पाया कि खंड 5.2.5 "अतार्किक है क्योंकि इसमें विधवा / तलाकशुदा बेटियों को पात्रता से बाहर रखा गया है।"
यह देखते हुए कि योजना का उद्देश्य "सम्मानित स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों के लिए एक आभारी राष्ट्र द्वारा एक सम्मान के टोकन" तैयार किया जाना था, यह आवश्यक नहीं था कि योजना के तहत "आश्रित" शब्द विभिन्न धार्मिक समुदायों के उत्तराधिकार अधिनियम जैसे अन्य कानूनों की सहमति में हो।
कोर्ट ने इस प्रकार कहा, "भले ही हम प्रश्नगत अधिनियम को ध्यान में रखें, तलाकशुदा और अविवाहित बेटियों के बीच भेद की कोई रेखा नहीं खींची गई है। उदाहरण के लिए, अगर हम धारा 8 और 9 को, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की अनुसूची के वर्ग I के साथ संयोजन में, पढ़ते हैं, यह स्पष्ट होगा कि वर्ग I वारिसों में न केवल विधवा, बल्कि मृतक की बेटी भी शामिल है। इसलिए, "अविवाहित" और "तलाकशुदा" बेटियों के बीच भेद की कोई रेखा नहीं खींची गई है। एक मानदंड जो तर्क की अवहेलना करता है, वह सही अर्थों में "समझदारी" भरा नहीं हो सकता है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि विधवा / तलाकशुदा बेटियों का पूर्ण बहिष्कार, यहां तक कि उन लोगों के लिए भी, जिनके पास भरणपोषण के लिए कोई व्यक्तिगत आय नहीं है....
अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह देखते हुए कि अविवाहित बेटियों को इस योजना में शामिल किया गया है, लेकिन विधवा/तलाकशुदा बेटियां, जो एक ही पायदान पर खड़ी हैं, जिनके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, को बाहर रखा गया है, इस प्रकार का वर्गीकरण "लैंगिक पूर्वाग्रह से भी बदतर" है।
इसके मद्देनजर, न्यायालय ने उक्त दिशानिर्देशों के खंड 5.2.5 को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया है और कहा कि खंड 5.2.3 में विधवा / तलाकशुदा बेटियों को भी शामिल किया जाएगा, जो सैनिक सम्मान योजना के लिए पात्र हैं, बशर्ते कि वे आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं होने के दूसरे परीक्षणों को संतुष्ट करें।
केस: सोनाली हटुआ गिरि बनाम यूनियर ऑफ इंडिया और अन्य।
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