'पहले कुंभ मेला की अनुमति दी गई, अब चार धाम': उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा- राज्य सरकार COVID-19 प्रोटोकॉल को लेकर लापरवाह है

Update: 2021-05-20 11:22 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार (20 मई) को कुंभ मेला की अनुमति देने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी की, जिसमें COVID-19 महामारी के दौरान कई हफ्तों तक एक करोड़ से अधिक लोग एकत्र हुए थे।

कोर्ट ने मंदिरों और धार्मिक उत्सवों में COVID-19 मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने में विफल रहने पर राज्य सरकार की जमकर खिंचाई की।

मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि बद्रीनाथ और केदारनाथ में संबंधित पुजारी सोशल डिस्टेंसिंग COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं।

कोर्ट ने राज्य से सवाल करते हुए कहा कि अगर पुजारियों के बीच COVID-19 फैलता है तो क्या होगा।

मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान ने विशेष रूप से कहा कि,

"केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के वीडियो में दिखाई दे रहा है कि पुजारी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं। भले ही देवता की पूजा की जा रही हो, लेकिन आप 23 पुजारियों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे सकते। राज्य द्वारा निगरानी के लिए किसे नियुक्त किया गया है?"

मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि इस तरह के वीडियो उत्तराखंड राज्य को शर्मसार कर रहे हैं। कोर्ट ने चार धाम के लिए एसओपी को लागू करने के कदमों की जानकारी नहीं देने के लिए राज्य सरकार को भी फटकार लगाई।

कोर्ट ने सरकारी वकील से कहा कि,

"पहले कुंभ मेला 2021 की अनुमति दी गई और अब चार धाम। कृपया हेलिकॉप्टर के माध्यम से चार धाम जाएं, केदारनाथ और बद्रीनाथ जाएं और खुद देखें क्या हो रहा है।"

सीजे चौहान ने राज्य सरकार से कहा कि,

"मुझे शर्म आती है जब मेरे सहयोगी फोन करते हैं और पूछते हैं कि हमारे राज्य के नागरिकों के साथ क्या हो रहा है, मैं उनसे क्या कहूं? निर्णय लेना मेरा काम नहीं है यह काम सरकार का है।"

कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि "आप (राज्य) न्यायालय को मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन लोगों को मूर्ख नहीं बना सकते और राज्य द्वारा लापरवाही बरती गई है। कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि वह खुद यह देखने के लिए चारधाम का दौरा करें कि क्या हो रहा है और मंत्रियों को भी राज्य का दौरा करना चाहिए और वास्तविकता को जानना चाहिए।

कोर्ट ने COVID-19, ब्लैक फंगस और COVID-19 की तीसरी लहर जैसे कई मुद्दों पर टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि निर्णय लेने वाले लापरवाह हो रहे हैं और राज्य सरकार के साथ-साथ न्यायपालिका भी लोगों के प्रति जवाबदेह है।

कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि राज्य के मुख्य सचिव की उपस्थिति ने कुंभ मेले में एक उत्प्रेरक के रूप में काम किया क्योंकि उन्होंने वहां डेरा डाला और उसके बाद चीजें बदतर हो गईं।

कोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा था कि राज्य सरकार ने COVID19 महामारी की दूसरी लहर के बारे में विशेषज्ञों द्वारा दी गई चेतावनी के बावजूद अनदेखा किया गया।

कोर्ट ने 10 मई को राज्य को चार धाम के लिए एसओपी को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया था।

कोर्ट ने 10 मई को पारित आदेश में कहा था कि,

"हालांकि सरकार द्वारा चार धाम यात्रा को निलंबित कर दिया गया है, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चार धाम प्रबंधन द्वारा जारी एसओपी का सख्ती से पालन किया जाए। इसके अलावा चार धाम के प्रबंधन के संबंध में एसओपी को लागू करने के लिए सरकार को तुंरत आवश्यक कदम उठाना चाहिए।"

डॉक्टरों और रेमडेसिविर की उपलब्धता का मुद्दा

मुख्य न्यायाधीश चौहान ने राज्य सरकार से कहा कि क्या राज्य सरकार सिप्ला के खिलाफ कोई कार्रवाई की क्योंकि वह पर्याप्त मात्रा में रेमडेसिविर (अनुबंध के अनुसार) की आपूर्ति करने में विफल रही है।

राज्य के वकील ने इस पर कहा कि सरकार ने सिप्ला पर दबाव बनाया है और उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति करने को कहा है, अन्यथा उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

कोर्ट ने इसके अलावा डॉक्टरों को नियुक्त करने के मुद्दे पर कहा कि,

"डॉक्टरों को नियुक्त करना टमाटर खरीदने जैसा नहीं है। जो डॉक्टर नोएडा, दिल्ली आदि में काम कर रहे हैं वे उत्तरकाशी में आकर काम क्यों करना चाहेंगे। अगर राज्य कह रहा है कि डॉक्टरों की चयन प्रक्रिया चल रही है तो मैं समझता हूं कि यह एक लंबी प्रक्रिया है। हम उम्मीद नहीं कर सकते कि राज्य कोई चमत्कार कर देगा। अगर राज्य डॉक्टरों को नियुक्त करने की प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं तो हमें उन्हें समय देना चाहिए। चयन प्रक्रिया रातोंरात पूरी नहीं हो सकती है।"

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि वह नहीं चाहता कि प्रक्रिया में जल्दबाजी करके अयोग्य चिकित्सा कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए और झोलाछाप डॉक्टरों की नियुक्ति की जाए।

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