पहला मामला,‌ जिसका यूट्यूब पर किया गया सजीव प्रसारण; कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया फैसला

Update: 2021-07-31 06:09 GMT

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना है कि कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) द्वारा 1 जुलाई, 2020 की उत्तर कन्नड़ जिले के कारवार तालुक के बैथकोल गांव में मौजूदा कारवार बंदरगाह के विस्तार के लिए दी गई सहमति अवैध है। उच्च न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्थापना के लिए नए सिरे से सहमति दिए जाने तक विस्तार कार्य पर रोक लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की खंडपीठ ने बैथकोल बंधारु निराश्र‌ितरा यांत्रिक्रुत धोनी मीनुगरारा सहकारा संघा नियमिता और उत्तर कन्नड़ ‌डिस्ट्र‌िक्ट फिशरमैन एसोसिएशन फोरम की ओर से दायर याचिका पर उक्त आदेश दिया। यह पहला मामला था, जिसमें कार्यवाही का सजीव प्रसारण उच्च न्यायालय के यूट्यूब चैनल पर किया गया।

अदालत ने केएसपीसीबी को 15 जून को दिए गए बोर्ड के अंडरटेकिंग के अनुसार स्थापना के लिए सहमति देने के लिए किए गए आवेदनों पर फैसला करने, 1 जुलाई, 2020 को दी गई सहमति को वापस लेने और कानून के अनुसार, निरीक्षण से पूरी प्रक्रिया को नए सिरे से करने की अनुमति दी है।

अदालत ने कहा है कि "न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर यह निर्णय अपलोड होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर आवेदनों पर उचित निर्णय लिया जाए।"

अदालत ने आगे जोड़ा कि, "जब भी स्थापना के लिए सहमति दी जाती है, पोर्ट अथॉरिटी को उन शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा, जिनके अधीन सहमति दी गई है। परियोजना को केएसपीसीबी द्वारा संचालन की सहमति देने के बाद ही शुरू किया जा सकता है। इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि पर्यावरण से संबंधित कानूनों के उल्लंघन के कारण इन याचिकाओं का विषय उक्‍त परियोजना कानून में खराब है।"

अदालत ने कर्नाटक राज्य और बंदरगाहों और अंतर्देशीय जल, कारवार बंदरगाह के निदेशक को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा 23 जनवरी, 2019 को जारी पर्यावरण मंजूरी के सभी नियम और शर्तों का ईमानदारी से पालन और क्रियान्यवयन हो।

कोर्ट ने आगे कहा," यह जोड़ने की जरूरत नहीं है कि जब तक केएसपीसीबी द्वारा परियोजना को स्थापना के लिए सहमति नहीं दी जाती है, तब तक कारवार बंदरगाह के दूसरे चरण के विकास का काम शुरू नहीं किया जा सकता है।"

अदालत ने राज्य सरकार को काम शुरू होने से पहले राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा विधिवत मान्य समुद्री और रिपेरियन जैव विविधता प्रबंधन योजना की एक प्रति प्रस्तुत करने की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए विशिष्ट शर्तों में शामिल शर्त संख्या 32 का पालन करने का भी निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

23 जनवरी 2019 को, राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) ने वाणिज्यिक कारवार बंदरगाह के प्रस्तावित दूसरे चरण के विकास के लिए पर्यावरण मंजूरी प्रदान की थी । पर्यावरण मंजूरी में 'विशिष्ट शर्तें' और 'सामान्य स्थितियां' शीर्षकों के तहत विभिन्न शर्तों को शामिल किया गया था।

याचिकाकर्ता ने पर्यावरण मंजूरी और केएसपीसीबी द्वारा दी गई सहमति को चुनौती दी। चुनौती अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उप-खंड (डी) और अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उप-खंड (जी) के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर आधारित है। अनुच्छेद 48-ए, 51-ए (जी) और 300ए के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है।

याचिकाकर्ता प्रस्तुतियां

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता मूर्ति नाइक ने कहा कि परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी देने का एसईआईएए का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी ईआईए अधिसूचना दिनांक 14 सितंबर, 2006 का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि, "उक्त अधिसूचना के खंड -3 के मद्देनजर, केंद्र सरकार का पर्यावरण और वन मंत्रालय पूर्व पर्यावरण मंजूरी देने वाला एकमात्र सक्षम प्राधिकारी है।"

आगे उन्होंने यह भी कहा कि, "उक्त सीआरजेड अधिसूचना दिनांक 6 जनवरी, 2011 के अनुसार, कारवार को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है और इसलिए, इसे सामान्य स्थिति (जीसी) के अर्थ के भीतर एक अधिसूचित पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में माना जाना चाहिए जैसा कि ईआईए अधिसूचना, 14 सितंबर, 2006 की अधिसूचना में अधिसूचित किया गया है।"

स्थापना के लिए सहमति के संबंध में, नाइक ने प्रस्तुत किया कि उक्त सहमति केएसपीसीबी द्वारा नहीं दी गई थी, बल्‍कि इसे सहमति समिति द्वारा जारी किया गया था, जिसके पास ऐसा करने की कोई शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि उचित निरीक्षण किए बिना स्थापना के लिए सहमति प्रदान की गई थी। यह भी तर्क दिया गया कि ' बंदरगाह के विस्तार की परियोजना के परिणामस्वरूप, पूरा रवींद्रनाथ टैगोर समुद्र तट नष्ट हो जाएगा।' उन्होंने प्रस्तुत किया कि कारवार के नागरिकों के लिए यह एकमात्र उपलब्ध समुद्र तट है, क्योंकि कारवार और अंकोला तालुकों के अधिकांश समुद्र तटों को नौसेना बेस की परियोजनाओं के लिए ले लिया गया है।

द्वितीय याचिकाकर्ता उत्तर कन्नड़ जिला मछुआरा संघ फोरम की ओर से पेश अधिवक्ता स्मरण शेट्टी ने कहा कि प्रस्तावित परियोजना निश्चित रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उप-खंड (जी) के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों का उल्लंघन करेगी।

राज्य की प्रस्तुतियां

अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कोई सामग्री नहीं है कि प्रस्तावित परियोजना के कारण मछुआरा समुदाय की मछली पकड़ने की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने तस्वीरों की ओर इशारा किया और अदालत को आश्वासन दिया कि वर्तमान में मछुआरा समुदाय द्वारा उपयोग किए जाने वाला घाट अप्रभावित रहेगा।

उन्होंने यह भी बताया कि कारवार बंदरगाह के दूसरे चरण के विकास के पूरा होने के बाद भी मछुआरों की नौकाओं को एप्रोच चैनलों के माध्यम से प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। उन्होंने प्रस्तुत किया कि 18 जनवरी, 2019 की सीआरजेड अधिसूचना बिल्कुल भी लागू नहीं है।

न्यायालय के निष्कर्ष

अदालत ने कहा कि सहमति की वैधता के मुद्दे के निस्तारण के दरमियान, 'एक रिट कोर्ट निर्णय के गुणों के बजाय निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित है।' 23 जनवरी, 2019 को एसईआईएए द्वारा पर्यावरण मंजूरी प्रदान की गई थी। उक्त मंजूरी में शर्त संख्या 23 में जल अधिनियम और वायु अधिनियम दोनों के तहत स्थापित / संचालित करने के लिए केएसपीसीबी से सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता शामिल है।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि जल अधिनियम की धारा -25 की उप-धारा (3) और वायु अधिनियम की धारा -21 की उप-धारा (3) के प्रावधान विशेष रूप से सहमति देने के लिए किए गए निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार आवेदनों की जांच करने के लिए प्रावधान करते हैं।

"कारवार को इको सेंसिटिव एरिया घोषित नहीं किया गया है"

अपने समक्ष रखे गए अभिलेखों को देखने के बाद अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज नहीं रखा गया है जो यह दर्शाता हो कि उक्त अधिनियम 1986 (पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम) की धारा 3 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए कारवार को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है, या द्वितीय चरण विकास परियोजना 1986 के उक्त अधिनियम की धारा 3 के तहत अधिसूचित पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों से 10 किलोमीटर की दूरी के भीतर आएगी। इसलिए, संशोधित सामान्य शर्तों (2014 की ईआईए अधिसूचना के आधार पर), अदालत ने यह मानना ​​असंभव पाया कि दूसरे चरण के विकास की परियोजना 'ए' श्रेणी में आएगी।

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