स्मृति ईरानी के खिलाफ एफबी पोस्ट-''पोस्ट विभिन्न समुदायों के बीच दुर्भावना/घृणा को बढ़ावा दे सकती है'': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (25 मई) को एक कॉलेज में वरिष्ठ शिक्षक और विभाग के प्रमुख को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। इस शिक्षक पर केंद्रीय कपड़ा व महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी के बारे में फेसबुक पर आपत्तिजनक और अश्लील पोस्ट डालने का आरोप है।
यह देखते हुए कि पोस्ट की सामग्री वास्तव में ऐसी है, जो सच में, विभिन्न समुदायों के बीच द्वेष या घृणा को बढ़ावा दे सकती है या उसमें बढ़ावा देने की सभी संभावनाएं मौजूद हैं, न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की पीठ ने कहा कि इस तरह का आचरण प्रथम दृष्टया उसे पूर्व-गिरफ्तारी जमानत की राहत पाने का हकदार नहीं बनाता है।
कोर्ट के समक्ष मामला
अदालत आवेदक डॉ शहरयार अली की ओर से आईपीसी की धारा 505(2) और आईटी एक्ट की धारा 67ए के तहत दर्ज मामले के संबंध में दायर अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रही थी। आवेदक के वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें इस मामले में आपसी दुश्मनी के कारण शिकायतकर्ता के कहने पर झूठा फंसाया गया था, जो भारतीय जनता पार्टी का जिला मंत्री हैं।
यह आग्रह किया गया था कि वह एक डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर और इतिहास विभाग के प्रमुख हैं और स्मृति जुबिन ईरानी के बारे में कथित आपत्तिजनक और अश्लील पोस्ट उनकी फेसबुक आईडी की हैकिंग के माध्यम से किया गया था।
दूसरी ओर, ए.जी.ए. ने प्रस्तुत किया कि पोस्ट में केंद्र सरकार के एक मंत्री के बारे में एक अश्लील टिप्पणी थी, जो एक बयान था और सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया था,जिसमें विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने की अफवाह थी। जो आईपीसी की धारा 505(2) के तहत दंडनीय कार्य है।
कोर्ट की टिप्पणियां
मामले की शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि क्या आवेदक ने वास्तव में मंत्री के संबंध में आपत्तिजनक और अश्लील पोस्ट पोस्ट की थी, इस सवाल को इस स्तर पर प्रथम दृष्टया स्वीकार किया जाता है, क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि वास्तव में आवेदक की आईडी को हैक किया गया था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आवेदक ने उस आईडी पर अपनी माफी पोस्ट की है, जिससे पता चलता है कि वह आईडी प्रथम दृष्टया अभी भी उसके द्वारा संचालित की जा रही है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा कि,
''यह भी स्पष्ट है कि इस पोस्ट को अपराध में सह-अभियुक्त हुमा नकवी द्वारा शेयर किया गया था और पोस्ट की सामग्री वास्तव में ऐसी है जो सच में अलग-अलग समुदायों के लोगों के बीच द्वेष या घृणा को बढ़ावा दे सकती है या उसमें बढ़ावा देने की सभी संभावना मौजूद हैं।''
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि,
''इस न्यायालय की प्रथम दृष्टया राय में, इस तथ्य को देखते हुए कि आवेदक एक कॉलेज में एक वरिष्ठ शिक्षक और विभागाध्यक्ष है, इस तरह का आचरण प्रथम दृष्टया उन्हें अग्रिम जमानत का हकदार नहीं बनाता है।''
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि आवेदक आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत मांगने का हकदार है।
इस प्रकार, संपूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने इसे अग्रिम जमानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला नहीं पाया और इसलिए अग्रिम जमानत के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया।
केस का शीर्षक - डॉ शहरयार अली बनाम यू.पी. राज्य व अन्य,[Criminal Misc. Anticipatory Bail Application u/s 438 Cr.P.C. No. - 9747 of 2021]
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