रक्षाबंधन पर पांच घंटे के लिए बेटे को ले जाने के लिए पत्नी के आवेदन पर पति ने आपत्ति की; दिल्ली हाईकोर्ट ने मुलाकात का समय कम किया

Update: 2021-08-23 06:07 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने पक्षकारों की सहमति से रक्षा बंधन के अवसर पर अपने पति के साथ अलग रहने वाले बेटे के संबंध में एक मां को मिलने वाले समय को कम कर दिया है। बच्चे की बहन मां के साथ रहती है।

नाबालिग के पिता ने फैमिली कोर्ट द्वारा सात अगस्त को पारित आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी।

इस याचिका में उसकी पत्नी को 22 अगस्त को सुबह 10 बजे नाबालिग बेटे को उसके आवास से लेने और त्योहार मनाने के बाद दोपहर तीन बजे वापस छोड़ने की अनुमति दी गई थी।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने मुलाकात की पांच घंटे की अवधि को साढ़े तीन घंटे में संशोधित करते हुए कहा:

"भले ही मुझे आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिलता है। फिर भी मुलाकात के समय में उपयुक्त कमी के लिए प्रतिवादी के प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए आक्षेपित आदेश पक्षकारों की सहमति से आंशिक रूप से यह निर्देश देकर संशोधित किया जाता है कि इसके बजाय प्रतिवादी 22.08.2021 को पूर्वाह्न 11.30 बजे याचिकाकर्ता के आवास से नाबालिग बेटे को लेगा और दोपहर तीन बजे तक उसे उसी स्थान पर छोड़ देगा।"

याचिकाकर्ता के पिता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि नाबालिग बेटा भावनात्मक रूप से उस पर निर्भर है, क्योंकि वही उसका फर्स्ट केयरटेकर है।

इसे देखते हुए यह निवेदन किया गया कि यदि बच्चे को ज़बरदस्ती माँ के घर जाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वह गंभीर मानसिक रूप से पीड़ित होगा।

इस दलील के समर्थन करने के लिए अदालत को एक वीडियो दिखाया गया। वीडियों में देखा गया कि बच्चा अपनी माँ की उपस्थिति में उत्तेजित और भयभीत हो जाता है।

दूसरी ओर, बच्चे की मां ने इस याचिका का जोरदार विरोध किया। माँ ने कहा कि उसका बेटा नवंबर 2020 तक खुशी-खुशी उसके साथ रह रहा था।

यह प्रस्तुत किया गया कि फैमिली कोर्ट ने नाबालिग बेटे को उसके घर लाने की अनुमति दी थी, ताकि दोनों भाई बहन एक साथ रक्षा बंधन मना सकते हैं।

हालांकि, मां ने कहा कि नाबालिग बच्चे की उम्र को देखते हुए और एक ऑटिस्टिक बच्चे के रूप में उसकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील होने के कारण अगर पाँच घंटे की मुलाकात का समय थोड़ा कम कर दिया गया था, तो उसे कोई आपत्ति नहीं है।

अदालत ने तदनुसार फैमिली कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए मुलाकात के समय को घटाकर साढ़े तीन घंटे कर दिया।

अदालत ने कहा,

"आवेदन में मांगी गई राहत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए मेरे विचार में इस तरह के किसी भी आवेदन को केवल फैमिली कोर्ट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था, न कि इस न्यायालय के समक्ष। तदनुसार, आवेदन को खारिज कर दिया जाता है।"

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अस्मिता नरूला के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा और प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता मेंदीरत्ता पेश हुए।

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