मथुरा के मंदिर में नमाज अदा करने के कारण गिरफ्तार किये गए एक्टिविस्ट फैसल खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी
पीस एक्टिविस्ट फैसल खान को, जिन्हें मथुरा (उत्तर प्रदेश) में नंद बाबा मंदिर के परिसर के अंदर नमाज अदा करने के चलते गिरफ्तार किया गया था, शुक्रवार (18 दिसंबर) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने फैसल खान की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया कि उन्हें धारा 153ए, 295, 505, 419, 420, 467, 468, 471 के तहत दर्ज केस क्राइम नंबर 390 ऑफ़ 2020 में जमानत पर रिहा किया जाए।
पृष्ठभूमि
जमानत आवेदक के अनुसार, घटना गुरुवार (29 अक्टूबर) की है, जब आवेदक अपनी चार दिवसीय साइकिल रैली "बृज 84 कोसी परिक्रमा" का समापन कर रहा था, जिसका उद्देश्य प्रेम, सहानुभूति और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश फैलाना था।
उस दिन, उन्होंने नंदबाबा मंदिर का दौरा किया और मंदिर के अंदर नंदबाबा मंदिर के पुजारी और अन्य भक्तों के साथ बातचीत भी की।
उक्त घटना की एक वीडियो रिकॉर्डिंग, एक गोस्वामी शुभम कांत जी (मंदिर से जुड़े व्यक्ति) द्वारा फेसबुक पर रिकॉर्ड और अपलोड की गई थी।
जमानत आवेदक, फैसल खान ने सांप्रदायिक सौहार्द के चलते नंद बाबा मंदिर के पीछे नमाज अदा की।
खान ने अपनी जमानत अर्जी में कहा है कि मंदिर के मुखिया ने आवेदक से मंदिर के भीतर नमाज अदा करने का अनुरोध किया क्योंकि वह नमाज अदा करने का समय था और मस्जिद कुछ दूरी पर थी।
दूसरी ओर, एफआईआर के अनुसार, उनके खिलाफ आरोप है कि उन्होंने सह-अभियुक्त, चांद मोहम्मद के साथ, पुजारी की सहमति के बिना मंदिर के अंदर नमाज अदा की और इसकी तस्वीरें वायरल की। ये खबर टेलीविजन पर भी दिखाई गई।
तत्पश्चात, इस आरोप पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई कि आवेदक और सह-अभियुक्त का यह कृत्य दूसरे समुदाय की धार्मिक भावना का अनादर करता है और इससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की संभावना है।
यह भी संदेह किया गया है कि आवेदक विदेशी धन प्राप्त कर रहे हैं।
निचली अदालतों में जमानत आवेदन हुआ ख़ारिज
आवेदक, फैसल खान ने पहले मंगलवार (03 नवंबर) को मजिस्ट्रेट कोर्ट, छत्ता तहसील का रुख किया, हालांकि, उनका जमानत आवेदन खारिज कर दिया गया।
तत्पश्चात, उन्होंने ADJ-02, मथुरा जिला न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हालाँकि, इस आवेदन को भी अदालत ने मंगलवार (24 नवंबर) को दिए अपने आदेश से रद्द कर दिया।
आवेदक के वकील द्वारा दिए गए तर्क
आवेदक के लिए पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता है, जिसने भारत के खुदाई खिदमतगार आंदोलन को पुनर्जीवित किया है और पिछले 25 वर्षों से सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए काम कर रहा है।
इस सिलसिले में उन्होंने मंदिरों के दर्शन के लिए यात्रा निकाली। उन्हें मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा प्रसाद और दोपहर का भोजन दिया गया।
उन्होंने आगे कहा कि आवेदक को इस मामले में झूठा फंसाया गया।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्राथमिकी रविवार (01 नवंबर) को 3 दिन की देरी के साथ दर्ज की गई थी और धारा 153- ए, 295, 505, 419, 420, 467, 468, 471 आईपीसी के अंतर्गत अपराध इस मामले में नहीं बनता है।
उन्होंने तर्क दिया कि केवल उन तस्वीरों के आधार पर जो वायरल हुईं, आवेदक को समाज के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के इरादे से नहीं कहा जा सकता है।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि
"उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश नहीं किया, बल्कि उन्होंने मंदिर के पुजारी की अनुमति के साथ मंदिर के पीछे नमाज अदा की और विदेशी फंड प्राप्त करने का आरोप आधार के बिना है।"
कोर्ट का आदेश
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने निर्देश दिया,
"आवेदक को व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।"
महत्वपूर्ण रूप से, आवेदक को ट्रायल के समापन तक ऐसे किसी भी उद्देश्य के लिए सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करने के लिए कहा गया है।