कनार्टक हाईकोर्ट ने बार काउंसिल से कहा, अधिवक्ताओं के क्लर्कों को लाभ पहुंचाने के लिए एक योजना बनाएं
कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु और कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन के दौरान अदालतें बंद होने के कारण परेशान पंजीकृत एडवोकेट्स क्लर्कों के लाभ के लिए एक योजना तैयार करें।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एम नागाप्रसन्ना की खंडपीठ ने कहा कि अधिवक्ताओं के क्लर्क ''बार के सदस्यों को लाभ पहुंचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं'' और इसलिए अधिवक्ता संघ के साथ-साथ स्टेट बार काउंसिल को भी इन प्रभावित क्लर्कों की ''मदद करने के लिए हाथ''आगे बढ़ाने चाहिए।
इस मामले में अधिवक्ता क्लर्क एसोसिएशन ने एक याचिका दायर कर मांग की थी कि उनको भी केएसबीसी से वित्तीय सहायता दिलवाई जाए।
इसी मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने यह टिप्पणी की है। एसोसिएशन ने प्रस्तुत किया कि लॉकडाउन के कारण, उनकी आय लगभग बंद हो गई या काफी कम हो गई है, इसलिए उन्होंने मांग की थी कि अदालतें बंद होने की अवधि के दौरान प्रत्येक सदस्य को दस हजार रुपये की सहायता दी जाए।
इसके जवाब में, केएसबीसी ने कहा था कि इन क्लर्कों पर उन अधिवक्ताओं को ध्यान देना चाहिए जिन्होंने उन्हें आवश्यक सहायता के लिए नियुक्त किया था।
काउंसिल ने यह भी कहा कि उनके हाथ बंधे हुए हैं, इसलिए महामारी की स्थिति के दौरान वह क्लर्कों को कोई भी वित्तीय सहायता नहीं कर सकते, क्योंकि कर्नाटक रजिस्टर्ड क्लर्कस वेल्फेयर फंड एक्ट 1983 या 2009 के नियमों में इस संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
इस दलीलों के साथ सहमति जताते हुए पीठ ने कहा कि-
"2009 के उक्त नियमों और विशेष रूप से नियम 6 के प्रावधानों को देखने के बाद यह पाया गया है कि पंजीकृत क्लर्कों या उनके परिजनों को फंड से भुगतान केवल दो आकस्मिकताओं में ही किया जा सकता है। पहली यह है कि सदस्य एक पंजीकृत क्लर्क होना चाहिए और दूसरी यह है कि उस सदस्य की मृत्यु की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के समय ही ऐसा भुगतान किया जा सकता है।
उक्त नियम 2009 की योजना को ध्यान में रखते हुए अधिनियम 1983 की धारा 27 की उपधारा (1) के तहत स्थापित फंड का उपयोग COVID 19 महामारी से निर्मित स्थिति के दौरान अधिवक्ताओं के पंजीकृत क्लर्कों की मदद के लिए नहीं किया जा सकता है।''
फिर भी अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिवक्ताओं के संघ के साथ-साथ स्टेट बार काउंसिल को भी ऐसे कठिन समय के दौरान उन पंजीकृत क्लर्कों की सहायता करनी चाहिए जो हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक रूल्स 1959 के तहत पंजीकृत हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता-एसोसिएशन को याचिका में एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु को भी एक पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी है ताकि वह इस याचिका में अपना पक्ष रख सकें।
इसी के साथ अदालत ने कहा कि-
''चूंकि याचिकाकर्ता के अधिकांश सदस्य रूल्स 1959 के तहत पंजीकृत क्लर्क हैं, इसलिए एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु, याचिकाकर्ता -एसोसिएशन और कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल को एक साथ आना चाहिए और अधिवक्ताओं के प्रभावितों क्लर्कों की मदद देने के लिए एक योजना तैयार करनी चाहिए।
यह उचित होगा यदि अगली तारीख से पहले, दूसरे प्रतिवादी के पदाधिकारी, याचिकाकर्ता-एसोसिएशन के पदाधिकारियों और तीसरे प्रतिवादी-एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु के पदाधिकारियों के साथ मिलकर एक संयुक्त बैठक बुलाए और पंजीकृत अधिवक्ताओं के क्लर्कों के लाभ के लिए एक योजना तैयार कर लें।''
इसी बीच पीठ ने याचिकाकर्ता-एसोसिएशन को सलाह दी है कि वह अपने सदस्यों के कल्याण के लिए एक कोष बनाए और बार के वरिष्ठ सदस्यों से संपर्क करें ताकि उनको कुछ वित्तिय सहायता मिल सकें।
पीठ ने कहा कि-
''याचिकाकर्ता-एसोसिएशन एक अलग खाता खोलकर एक फंड स्थापित करने का फैसला करें। हमें यकीन है कि प्रतिवादी नंबर दो-कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल और प्रतिवादी नंबर तीन एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ बेंगलुरु निश्चित रूप से फंड एकत्रित करने के लिए याचिकाकर्ता-एसोसिएशन की सहायता करेंगे।''
अंत में अदालत ने कहा कि-
''हम आशा करते हैं और यह भरोसा भी करते हैं कि प्रतिवादी नंबर दो व तीन प्रभावित अधिवक्ताओं के लिपिकों या क्लर्कों के मामलों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए उन्हें वर्तमान स्थिति में जीवित रहने में मदद करेंगे।''
इस मामले में अब 29 मई को सुनवाई होगी।
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