'अगर रिटर्निंग आफिसर के त्रुटिपूर्ण आदेश से चुनाव में बाधा उत्पन्न नहीं होती है तो कोर्ट को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए': कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2021-03-13 10:47 GMT

Calcutta High Court 

कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा कि अगर रिटर्निंग ऑफिसर के त्रुटिपूर्ण कार्यवाही से संचलित चुनाव प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है तो अदालतें रिट क्षेत्राधिकार के तहत जांच करने के लिए उत्तरदायी हैं। 

मुख्य न्यायाधीश थोथाथिल बी. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध रॉय की खंडपीठ ने कहा कि,

"रिटर्निंग ऑफिसर की संभावित त्रुटिपूर्ण कार्यवाही, जिन्हें रिट क्षेत्राधिकार के तहत केवल ऐसी त्रुटियों को सुधार के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है, जिस त्रुटि का संचलित चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से चुनाव में बाधा उत्पन्न होती है।"

कोर्ट ने मंडा जगन्नाथ बनाम केएस रथनाम एंड अन्य (2004) 7 SCC 492 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा जताया।

बेंच ने आगे कहा कि,

"यदि एक त्रुटिपूर्ण आदेश से चुनाव का संचालन बाधित नहीं होता है तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालतों को रिटर्निंग ऑफिसर के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जिसका उपाय केवल 'चुनाव याचिका (Election petition)' में निहित है।"

पृष्ठभूमि

वर्तमान मामले में डिवीजन बेंच मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। यह अपील उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के एक आदेश के खिलाफ कथित तौर पर आगामी बंगाल चुनाव के उम्मीदवार के नामांकन के त्रुटि की सूचना पर हस्तक्षेप करने पर की गई थी।

चुनौती का आधार यह है कि दायर की गई याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 329 (बी) के तहत चुनावी मामलों में सुनवाई योग्य नहीं है। इस प्रावधान में कहा गया है कि "चुनाव याचिका" को छोड़कर अन्य किसी याचिका द्वारा संसद या राज्य विधानमंडल के चुनावों को चुनौती नहीं दी जा सकती है।

चुनाव आयोग ने यह तर्क दिया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत रिटर्निंग ऑफिसर और वैधानिक अधिकारियों को सूचित किए बिना आदेश जारी किया गया है।

जांच - परिणाम

पीठ ने कहा कि आदेश को पारित कर दिया गया, जबकि उम्मीदवारों के नामांकन पत्र जांच के चरण में था।

आगे कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 36 में उम्मीदवारों के नामांकन की जांच का प्रावधान है। यह रिटर्निंग ऑफिसर को नामांकन पत्रों की जांच करने और किसी भी नामांकन पर सभी आपत्तियों का फैसला करने में सक्षम बनाता है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के उप-खंड 4 में कहा गया है कि रिटर्निंग अधिकारी किसी भी त्रुटि के आधार पर किसी भी नामांकन पत्र को अस्वीकार नहीं करेगा, जो ठोस प्रकृति का नहीं है।

बेंच ने कहा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 34 के तहत इस तरह की जांच का परिणाम, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100 (1) (सी) के संदर्भ में चुनाव को शून्य घोषित होने के आधार नामांकन के "अनुचित अस्वीकृति" होने पर उस पर कोर्ट न्यायिक निर्णय ले सकता है।

बेंच ने इस तरह के विधायी ढांचे की पृष्ठभूमि पर कहा कि,

" लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100 (1) (सी) के 'अनुचित अस्वीकृति' और अधिनियम की धारा 36(4) के तहत किसी भी त्रुटि के आधार पर 4 नामांकन पत्र की अस्वीकृति जो ठोस प्रकृति की नहीं है, के बीच एक रेखा खींचने की कोशिश करना चाहिए। यह हमेशा उस मुद्दे को चुनाव याचिका में विचार के लिए खुला रखने के पक्ष में रहेगा।"

कोर्ट ने अंत में कहा कि,

"किसी भी त्रुटि के आधार पर रिटर्निंग अधिकारी द्वारा किसी भी नामांकन पत्र की अस्वीकृति और यह प्रश्न कि क्या इस तरह की त्रुटि ठोस प्रकृति का है या नहीं, इसके साथ ही सवाल यह है कि क्या इस तरह की अस्वीकृति लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100 (1) (सी) के 'अनुचित अस्वीकृति (Improper Rejection)' के तथ्यों और कानून के अनिवार्य रूप से मिश्रित प्रश्न हैं।"

केस का शीर्षक: मुख्य चुनाव आयुक्त एंड अन्य बनाम उज्जवल कुमार एंड अन्य।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



Tags:    

Similar News