ईबीपीजीसी सर्टिफिकेट पेश कर पाने में विलंब के आधार पर रोजगार से इनकार नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2023-04-13 14:16 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग बनाम सुभाष चंद और अन्य के मामले में दायर लेटर्स पेटेंट अपील का निस्तारण करते हुए कहा है कि केवल ईबीपीजीसी सर्टिफिकेट (सामान्य जा‌ति में आर्थिक रूप से पिछड़ा व्यक्त‌ि) को पेश करने में देरी के आधार पर किसी व्यक्ति को रोजगार से इनकार नहीं किया जा सकता है।

पीठ में जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस सुखविंदर कौर शामिल थीं।

तथ्य

सुभाष चंद (प्रतिवादी एक) ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (अपीलकर्ता) द्वारा 28.06.2015 को जारी एक विज्ञापन के अनुसरण में स्नातकोत्तर शिक्षक (राजनीति विज्ञान) के पद के लिए आवेदन किया था।

प्रतिवादी एक ने विशेष पिछड़ा वर्ग [एसबीसी] श्रेणी के तहत आरक्षण का दावा किया। उन्होंने ईबीपीजीसी श्रेणी के तहत भी पात्रता का भी दावा किया।

विज्ञापन में एक शर्त थी कि ईबीपीजीसी प्रमाण पत्र ऑनलाइन आवेदन फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि यानी 12.10.2015 से पहले जारी किया होना चाहिए। प्रतिवादी एक की ओर से दिया गया इबीपीजीसी प्रमाणपत्र 05.06.2017 को जारी किया गया था। इस प्रकार, प्रतिवादी एक के नियुक्ति पत्र को अपीलकर्ता ने अस्वीकार कर दिया था।

जिसके बाद सुभाष चंद ने उक्त पद पर विचार करने के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच के समक्ष सुभाष रिट याचिका दायर की थी। सिंगल जज ने प्रतिवादी एक के पक्ष में नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया। इसका पहला आधार यह था कि उसे ईबीपीजीसी श्रेणी में अंतिम उम्मीदवार से अधिक अंक मिले ‌थे। दूसरा उक्त श्रेणी में 11 पद रिक्त पड़े हैं। तीसरा, प्रमाण पत्र 05.06.2017 को जारी किया गया है, जिसमें यह प्रमाणित किया गया है कि प्रतिवादी एक ईबीपीजीसी श्रेणी से संबंधित है।

आदेश से व्यथित होकर, हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने के लिए रिट अपील दायर की, जिसे लेटर्स पेटेंट अपील कहा गया।

निष्कर्ष

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि केवल इस आधार पर कि सक्षम प्राधिकारी की ओर से जारी ईपीबीजीसी प्रमाणपत्र को पेश करने में देरी हुई थी, प्रतिवादी एक को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

डॉली छंदा बनाम चेयरमैन, जेईई 2005(9)SCC 779 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया था कि किसी मामले के तथ्यों के आधार पर, सबूत जमा करने के मामले में कुछ छूट हो सकती है और सबूत जमा करने से संबंधित नियमों के हर उल्लंघन के परिणामस्वरूप उम्मीदवारी की अस्वीकृति जरूरी नहीं है।

आगे यह देखा गया कि जबकि उम्मीदवार को आरक्षण के लाभ का दावा करने के उद्देश्य से कटऑफ तिथि तक पात्र होना चाहिए अर्थात शैक्षिक योग्यता होनी चाहिए, पात्रता का प्रमाण कटऑफ तिथि तक प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। भले ही कटऑफ तिथि के बाद आरक्षण के लिए पात्रता का प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है, उम्मीदवार को आरक्षण का लाभ देने के लिए विचार किया जा सकता है।

न्यायालय ने आगे राम कुमार गिजरोया बनाम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड और अन्य 2016 (4) SCC 754 के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उन उम्मीदवारों की उम्मीदवारी, जो आरक्षित श्रेणियों से संबंधित हैं, को केवल जाति प्रमाण पत्र देर से जमा करने के कारण खारिज नहीं किया जा सकता है।

चार्ल्स के स्कारिया और अन्य बनाम डॉ सी मैथ्यू और अन्य 1980(2) SCC 752, अर्चना चौहान पुंधीर(डॉ ) बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य 2011 (11) SCC 486 और रीना और अन्य बनाम कुलपति, पं बीडी शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, रोहतक और अन्य सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न अन्य निर्णयों पर भी भरोसा किया गया था।

अदालत ने वर्तमान मामले के तथ्यों को एपी लोक सेवा आयोग बनाम बी शरत चंद्र (1990) 2 SCC 669 और श्रीमती रेखा चतुर्वेदी बनाम राजस्थान विश्वविद्यालय 1993 (Suppl 3) SCC 168 के मामलों से इस आधार पर अलग किया कि ये मामले आवश्यक पात्रता शर्त रखने से संबंधित हैं, लेकिन आरक्षण के दावे से नहीं। इस प्रकार, आरक्षण दावे का प्रमाण बाद में प्रस्तुत किया जा सकता है।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ खंडपीठ ने अपील को खारिज कर दिया।

केस टाइटलः कर्मचारी चयन आयोग बनाम सुभाष चंद व अन्य

केस नंबरः एलपीए-1199-2019


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