'Ego' तीन अक्षरों वाला एक छोटा सा शब्द है जो रिश्तों को बिगाड़ देता हैः मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2022-10-18 15:00 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने एक पत्नी की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका को खारिज करते हुए जोर देकर कहा है कि माता-पिता को बच्चे के कल्याण के लिए अपनी 'ईगो' को छोड़ देना चाहिए। इस महिला ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उसके पति ने उनके चार साल के बेटे को अवैध कस्टडी में रखा हुआ है।

जस्टिस एस वैद्यनाथन और जस्टिस सी सरवनन ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दी कि बच्चा उसके पति की अवैध कस्टडी में नहीं है। अदालत ने हालांकि, याचिकाकर्ता को उचित फोरम का दरवाजा खटखटाने और बच्चे की कस्टडी के लिए उपाय निकालने की स्वतंत्रता दे दी है।

वर्तमान मामले में पत्नी ने दलील दी थी कि वैवाहिक विवाद के चलते वह दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए अपने बेटे को लेकर मायके चली गई थी। परंतु उसका पति उसके मायके में आकर उसके नाबालिग बेटे को अपने साथ ले गया।

वहीं पति ने दलील दी कि उसकी पत्नी खुद उनके नाबालिग बेटे को उसकी कस्टडी में छोड़कर दूसरे बच्चे को जन्म देने के लिए अपने मायके चली गई थी। उसने नोटिस मिलने के बाद ही वर्तमान याचिका दायर की है क्योंकि उसे पता चल गया है कि प्रतिवादी पति ने तलाक के लिए याचिका दायर कर दी है।

यह टिप्पणी करते हुए कि ईगो अक्सर रिश्तों को नष्ट कर देती है, अदालत ने कहा,

पक्षकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि 'ego' सिर्फ एक छोटा तीन अक्षर का शब्द है, जो 'relationship' नामक एक बड़े बारह अक्षर के शब्द को नष्ट कर सकता है, क्योंकि ईगो और प्रेम एक साथ यात्रा नहीं कर सकते हैं। जैसा भी हो, परंतु यह न्यायालय बच्चे की कस्टडी के बारे में निर्णय नहीं ले सकता है और यह याचिकाकर्ता के लिए है कि वह एक मां होने के नाते बच्चे की कस्टडी के लिए उपयुक्त फोरम के समक्ष जाए और उपाय खोजे।

अदालत ने जस्टिस वैद्यनाथन द्वारा की गई टिप्पणियों को दोहराया जहां पीठ ने टिप्पणी की थी कि ईगो और असहिष्णुता 'फुटवियर' की तरह हैं जिन्हें घर से बाहर छोड़ना पड़ता है ताकि बच्चे का जीवन दयनीय न बन पाए।

अदालत ने कोर्ट के एक अन्य फैसले का भी हवाला दिया जिसमें पत्नी की तुलना जड़ से और पति की ट्रंक से करते हुए कहा गया है कि जब जड़ खराब हो जाएगी तो पूरा परिवार बर्बाद हो जाएगा। इस प्रकार, पति के लिए पत्नी के कल्याण की देखभाल करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

केस टाइटल-श्रीमती कार्तिका बनाम पुलिस अधीक्षक

केस नंबर- एचसीपी.संख्या-1884/2022

याचिकाकर्ता के वकीलः श्री जी. बालमणिकंदन

प्रतिवादी के लिए वकीलः श्री आर मुनियप्पाराज, अतिरिक्त लोक अभियोजक

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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