डॉक्टरों ने अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने का बहुत ही अनुचित समय चुना है, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जूनियर डॉक्टर्स की हड़ताल को अवैध घोषित किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य में जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (JUDA) की हड़ताल को अवैध घोषत करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने का बहुत ही अनुचित समय चुना है।
चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने कहा कि, "स्पष्ट रूप से, ऐसे महत्वपूर्ण समय में, जब पूरा देश COVID-19 की दूसरी घातक लहर के खतरे से जूझ रहा है, हड़ताली डॉक्टर उपरोक्त घोषणा में खुद ली गई पवित्र शपथ को पूरी तरह से भूल गए हैं।"
मामला
याचिकाकर्ता शैलेंद्र सिंह ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की थी कि पूरे मध्य प्रदेश राज्य में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (संक्षेप में, "जुडा") के सदस्यों को हड़ताल जारी रखने से रोका जाना चाहिए।
याचिका में राज्य सरकार को आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम और चिकित्सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 के तहत दोषी निदेशकों के खिलाफ उचित कार्रवाई शुरू करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
यह भी प्रार्थना की गई कि जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के उन सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिन्होंने हड़ताल पर रहकर 31 जनवरी 2014 और 25 जुलाई 2018 को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवमानना की है, जिसके तहत कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य के सरकारी अस्पतालों और सरकारी मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध सभी चिकित्सा अधिकारियों को हड़ताल पर जाने से प्रतिबंधित कर दिया है।
प्रस्तुतियां
जुडा के सदस्यों (स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के छात्रों सहित) ने 31 मई से काम से दूर रहने का फैसला किया था क्योंकि वे अपने वजीफे को 55,000 रुपये से बढ़ाकर 59,000 रुपये करने की मांग कर रहे थे।
यह तर्क दिया गया था कि देश के 17 राज्यों ने पहले ही COVID की अवधि के दौरान वजीफा 85,000/- रुपये तक बढ़ा दिया है और यह कि जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के पास इसे प्रमाणित करने के लिए सभी दस्तावेज हैं। इसलिए सरकार को रेजिडेंट डॉक्टरों की मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
जूनियर डॉक्टरों ने तर्क दिया कि उन्हें कार्यस्थल पर पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि कुछ घटनाओं में उन्हें न केवल दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है बल्कि विभिन्न सरकारी अस्पतालों में मरीजों के परिचारकों और परिवार के सदस्यों द्वारा भी पीटा जाता है।
इसलिए उनकी मांग थी कि अगर वे और उनके परिवार के सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित हैं तो उन्हें उसी अस्पताल में मुफ्त इलाज मुहैया कराया जाए जहां वे काम कर रहे हैं।
आदेश
न्यायालय के समझाने और अधिवक्ता ऋषि श्रीवास्तव तथा सिद्धार्थ आर गुप्ता के प्रयासों के बावजूद हड़ताली चिकित्सक हड़ताल समाप्त करने को तैयार नहीं थे। जूडा के पदाधिकारी इस बात पर जोर दे रहे थे कि वे सरकार से तभी बातचीत करेंगे जब उनकी मांगें पूरी होंगी।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने टिप्पणी की कि सभी डॉक्टरों का मानवता के प्रति गंभीर कर्तव्य है और यह कर्तव्य उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित नागरिकों की सेवा करने के लिए बाध्य करता है।
कोर्ट ने कहा, "हम इस बात की काफी सराहना करते हैं कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य की कीमत पर कठिनाई का सामना किया और विषम घंटों में ड्यूटी की। लेकिन साथ ही यह भी उतना ही सच है कि उन्होंने अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने के लिए अनुचित समय चुना है, चाहे वे कितने भी उचित क्यों न हों।"
इसके अलावा, यह देखते हुए कि डॉक्टर बातचीत करने के इच्छुक नहीं थे और अपनी मांगों पर अड़े थे, कोर्ट ने कहा, "हम इस जिद्दी रवैये की सराहना नहीं कर सकते हैं और ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ पर हड़ताल पर आगे बढ़ने की उनकी कार्रवाई की निंदा करते हैं, जब लगभग पूरा देश कोरोना वायरस की दूसरी लहर से बचने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसने देश के विभिन्न हिस्सों में कई सौ जिंदगियों को अपनी चपेट में ले लिया है।"
इस प्रकार, न्यायालय ने जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल को अवैध घोषित किया और उन्हें तुरंत अपने काम को शुरू करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा, "यदि वे ऐसा करते हैं तो एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, चिकित्सा और स्वास्थ्य और आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा शामिल हों, उन्हें तुरंत बातचीत के लिए बुलाए।"
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि वे 24 घंटे के भीतर ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो सरकार उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकती है, जैसा कि वह कानून के अनुसार उचित समझे।
केस टाइटिल- शैलेंद्र सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
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