तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपनी जरूरत पूरी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण की हकदार : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-05-13 15:52 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एक मुस्लिम महिला अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने आगे कहा कि जहां पत्नी कहती है कि उसे खुद को और अपनी बेटी के भरण पोषण में बहुत कठिनाइयां हैं, जबकि उसके पति की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है, पत्नी पति से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी।

संक्षेप में मामला

याचिकाकर्ता (अर्शिया रिज़वी) अपनी बेटी के साथ प्रधान न्यायाधीश / एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए पुनरीक्षण याचिका के साथ न्यायालय का रुख किया। प्रधान न्यायाधीश / एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया था, जिसमें विरोधी पक्षकार (पक्षकार नंबर 2 पति) से भरण-पोषण की मांग की गई थी।

इस मामले में महिला ने अदालत के सामने पेश किया कि उसे अपने ससुराल वालों से मानसिक और शारीरिक यातना का सामना करना पड़ा और उसे अपनी बेटी के साथ अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा।

हाईकोर्ट के समक्ष आगे यह तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने उसके ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता पर विचार नहीं किया और सीआरपीसी की धारा 125 की याचिका को खारिज करते हुए इस अनुमान पर आदेश पारित किया कि महिला ने स्वेच्छा से पति को छोड़ दिया, इसलिए उसे भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

दूसरी ओर पति के वकील (पक्षकार नंबर 2) ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ता नंबर 1 एक तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी है और इसलिए वह मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 1986 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है।

कोर्ट की टिप्पणियां

कोर्ट ने पाया कि दानियाल लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ, ,इकबाल बानो बनाम यूपी राज्य और अन्य, (2007) 6 एससीसी 785 और शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य (2017) 9 एससीसी 1 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का दावा कर सकती है और यहां तक ​​​​कि एक तलाकशुदा महिला भी भरण पोषण का दावा कर सकती है।

विरोधी पक्षकार नं. 2 के इस तर्क के संबंध में कि उसने याचिकाकर्ता को तलाक दे दिया है, कोर्ट ने शायरा बानो के मामले का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि तलाक एक बार में घोषित किया जाता है और फतवा जारी किया जाता है, तो यह कानूनी तलाक नहीं हो सकता और इसमें कोई कानूनी बल नहीं है, इसलिए कोर्ट ने कहा कि पक्षकार नंबर 2 द्वारा दिया गया तलाक कुरान के अनुसार नहीं है, इसलिए पक्ष नंबर 2 द्वारा दिया गया तलाक कानून के अनुसार नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता 1 द्वारा अपने बयान के साथ-साथ उसके आवेदन में भी दहेज की मांग के साथ-साथ अपने साथ हुई क्रूरता का उल्लेख किया, इसके बावजूद यह आश्चर्यजनक है कि निचली अदालत ने इस तथ्य की अनदेखी की। निचली अदालत के समक्ष तथ्य यह है कि उसे परेशान किया गया और अपने पति के घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

अदालत ने यह ध्यान देने के बाद कि पति ने रिकॉर्ड में स्वीकार किया है कि उसका वेतन 47,000 / - रुपये है, अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता बतौर भरण पोषण प्रति माह 7,000 रुपये प्राप्त करने की हकदार होगी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 397 के तहत अदालत के पास आदेश को सही करने और पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के तहत उचित कदम उठाने की पर्याप्त शक्ति है। इस प्रकार, न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकार्ता की पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी।

एडवोकेट नदीम मुर्तजा, मोहसिन और अंजनी के. मिश्रा याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए।

केस टाइटल- अर्शिया रिज़वी और अन्य। बनाम यूपी राज्य और अन्य। [क्रिमिनल रिविज़न नंबर - 763/2018]

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 241

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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