चिंताजनक पैटर्न सामने आ रहा है, जहां क्रिमिनल चार्जेस से बचने के लिए आरोपी रेप पीड़िता से शादी करते हैं और एफआईआर रद्द होने के बाद उसे छोड़ देते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट
“एक चिंताजनक पैटर्न सामने आ रहा है, जहां क्रिमिनल चार्जेस से बचने के लिए आरोपी रेप पीड़िता से शादी करते हैं और एफआईआर रद्द होने या जमानत मिलने के बाद पर उसे छोड़ देते हैं।“
ये टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट ने आगे कहा- चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी धोखे से शादी कर लेता है खासकर जब पीड़िता असॉल्ट की वजह से प्रेगनेंट हो जाती है और जैसे ही FIR रद्द होती है या जमानत मिल जाती वो उसे छोड़ देता है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 363/366ए/376/505 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 6 के तहत 2021 में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
केस के मुताबिक, 17 साल की पीड़िता की 20 साल के आरोपी से मुलाकात तब हुई थी, जब वो ट्यूशन में पढ़ रही थी। लड़की ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ दिया और एक गेस्ट हाउस में उसकी सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
इसके बाद आरोपी ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। आरोपी ने लड़की को उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दी और कई बार जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
पीड़िता को अप्रैल 2021 में पता चला कि वो प्रेगनेंट है, तो उसने अपनी मां को बताया। आरोपी ने कथित तौर पर पीड़िता और उसकी मां दोनों को धमकी दी।
आरोप है कि उसने पीड़िता से शादी के दस्तावेजों पर जबरदस्ती हस्ताक्षर कराए और उसके बाद वो पीड़िता के साथ किराए के मकान में रहने लगा।
पीड़िता का कहना था कि "शादी" के बाद भी वो दुर्व्यवहार करता था। पीड़िता ने तंभ आकर एफआईआर दर्ज कराई और इसके बाद गर्भ का खत्म कराया।
आरोपी के वकील ने एफआईआर रद्द करने की मांग की। और कहा- दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं। दोनों ने अपनी मर्जी से एक -दूसरे से शादी की थी।
आगे कहा कि दोनों मुस्लिम हैं। मुस्लिम कानून के मुताबिक दोनों का विवाह वैध है क्योंकि पीड़िता 15 साल की हो चुकी है।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में मामले का समर्थन किया है। लड़की ने अपने बयान में कहा है कि आरोपी ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए गए थे।
जस्टिस शर्मा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं, सबूतों को देखा और कहा- यौन उत्पीड़न साल 2021 में हुआ था। पीड़िता प्रेगनेंट हो गई थी। सामाजिक दबाव की वजह से पीड़िता की मां आरोपी को अपनी बेटी से शादी करने को कहा। क्योंकि वो बच्चे का बायोलॉजिकल फादर है।
अदालत ने कहा- मुद्दा ये है कि क्या एक मुस्लिम लड़की 15 साल की उम्र के बाद प्यूबर्टी आने बाद एज ऑफ मेजोरिटी प्राप्त कर लेती है। इस तरह के मामले पॉक्सो के तहत चलेंगे या नहीं, ये सुप्रीम कोर्ट में विचार और निर्णय के लिए लंबित है।
अदालत ने आगे कहा- भले ही यौन संबंध नाबालिग की सहमति से बनाया गया हो, जिससे वो पूरी तरह इनकार कर चुकी है, फिर भी एफआईआर को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता है क्योंकि यौन संबंध के लिए नाबालिग की सहमति का इस उद्देश्य के लिए कोई महत्व नहीं है।"
पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
"किसी भी मामले में, वर्तमान मामले में, नाबालिग पीड़िता विशेष रूप से इस बात से इनकार करती है कि यौन संबंध उसकी सहमति से बनाए गए थे और उन परिस्थितियों को बताती है जिनमें उसके साथ पहले यौन उत्पीड़न किया गया था और उसके बाद उसकी अनुचित तस्वीरों को सार्वजनिक करने की धमकी के तहत बार-बार यौन उत्पीड़न किया गया था। ऐसी परिस्थितियों में, वर्तमान मामला भजन लाल (सुप्रा) या निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर (सुप्रा) के मामले में शामिल नहीं है और मामले की योग्यता के आधार पर, यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप प्रकृति में बेतुके हैं या यह असंभव है या कथित अपराध हो ही नहीं सकता था।''
केस टाइटल: मोहम्मद अमान मलिक बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अंकित राणा, राहुल सैंड और सुधीर कुमार।
मनोज पंत, राज्य एपीपी।