Dharmasthala Burial Case | बेंगलुरु कोर्ट ने मंदिर प्रशासन के खिलाफ मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाते हुए नया आदेश जारी किया
बेंगलुरु सिविल कोर्ट ने धर्मस्थल दफन मामलों से संबंधित मंदिर प्रशासन या परिवार के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से कुछ मीडिया घरानों पर रोक लगाते हुए एक नया अंतरिम आदेश जारी किया।
शहर की सिविल कोर्ट ने कहा,
"सीपीसी की धारा 151 के साथ आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत वादी द्वारा दायर I.A. संख्या II आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रतिवादी (प्रतिवादी नंबर 22, 27, 28, 34, 37, 57, 60, 61, 90, 91, 92, 100, 101, 109, 153, 157, 210, 214, 217, 218, 241, 264, 275, 278, 280, 286, 287, 295, 299, 301, 306, 312, 316, 317, 319, 320, 327, 330, 331 को छोड़कर) जिनके खिलाफ वादी मुकदमा नहीं कर रहा है और प्रतिवादी नंबर 6, 17, 20, 26, 29 और 311 (जिनके विरुद्ध सम्मन/नोटिस अभी तक तामील नहीं हुआ है), उनके आदमियों, नौकरों, एजेंटों, प्रशासकों, समनुदेशितियों या उनके माध्यम से या उनके अधीन दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य निषेधाज्ञा के माध्यम से निर्देश दिया जाता है कि वे मुकदमे के निपटारे तक आवेदन की अनुसूची में उल्लिखित/निर्दिष्ट वीडियो/यूआरएल का प्रसारण/प्रसारण न करें।
बता दें, कर्नाटक हाईकोर्ट ने 1 अगस्त को धर्मस्थल दफन मामले के संबंध में यूट्यूब चैनल 'कुडला रैम्पेज' के विरुद्ध पारित एकपक्षीय प्रतिबंध आदेश रद्द कर दिया था।
हाईकोर्ट का यह आदेश बेंगलुरु की स्थानीय अदालत द्वारा विभिन्न मीडिया घरानों और यूट्यूब चैनलों को वाद धर्मस्थल के धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े के भाई हर्षेंद्र कुमार डी, उनके परिवार के सदस्यों, परिवार द्वारा संचालित संस्थाओं और श्री मंजूनाथस्वामी मंदिर, धर्मस्थल के खिलाफ कोई भी "अपमानजनक सामग्री" प्रकाशित करने से रोकने के बाद आया। इसके बाद चैनल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि निचली अदालत के आदेश में किसी भी कथित मानहानिकारक सामग्री का उल्लेख नहीं है, जिसके आधार पर इसे पारित किया गया। उन्होंने आगे कहा कि आदेश में "अनिवार्य व्यापक निषेधाज्ञा" दी गई।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि यह आदेश इतना व्यापक है कि यह हर्षेंद्र कुमार डी, परिवार या यहां तक कि धर्मस्थल के खिलाफ किसी भी आवाज को "खतरा" बनाता है। यूट्यूब चैनल 'कुडला रैम्पेज' के खिलाफ निषेधाज्ञा खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने निचली अदालत से मामले पर नए सिरे से फैसला करने को कहा।
हाईकोर्ट के रिमांड के बाद प्रारंभिक निषेधाज्ञा पारित करने वाले ट्रायल जज ने सुनवाई से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया कि उन्होंने मंदिर परिवार द्वारा संचालित एक लॉ स्कूल से पढ़ाई की है। इसलिए मामले को एक अन्य सिविल कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया।
6 अगस्त के आदेश द्वारा जिस ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामला स्थानांतरित किया गया, उसने अंतरिम आदेश को बढ़ाने से इनकार किया।
कुडला रैम्पेज मामले में हाईकोर्ट के आदेश के बाद वादी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने 8 अगस्त को बेंगलुरु सिविल कोर्ट को धर्मस्थल मंदिर के धर्माधिकारी के भाई हर्षेंद्र कुमार डी द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई की अगली तारीख से दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया। इस आवेदन में मीडिया घरानों को धर्मस्थल दफन मामलों के संबंध में मंदिर प्रशासन या परिवार के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोकने की मांग की गई।
जस्टिस हर्षेंद्र कुमार डी (जो मंदिर प्रशासन के सचिव भी हैं) द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें यूट्यूब चैनल पर प्रतिबंध आदेश को हटाते हुए ट्रायल कोर्ट को समयबद्ध तरीके से मामले का फैसला करने का निर्देश दिया गया।