दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी परिसर के अंदर आवारा कुत्तों को पालने की आरोपी प्रोफेसर की सेवाएं समाप्त करने के फैसले को बरकरार रखा
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल की संविदा प्रोफेसर डॉ. गीता ओबेरॉय को परिसर के अंदर आवारा कुत्तों को "प्रोत्साहित करने और आश्रय देने" के आरोप में 2021 में जारी कारण बताओ नोटिस के आधार पर बर्खास्तगी को बरकरार रखा।
जस्टिस जसमीत सिंह ने 2014 से अकादमी में कार्यरत प्रोफेसर की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अकादमी के निदेशक द्वारा 01 फरवरी, 2021 को जारी कारण बताओ नोटिस के साथ-साथ 13 मई को उनकी नियुक्ति समाप्त करने के कार्यकारी समिति के आदेश को चुनौती दी गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़,, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस संजय किशन कौल कार्यकारी समिति में शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ अकादमी के अध्यक्ष हैं।
समिति के प्रस्ताव के अनुसार, प्रोफेसर ओबेरॉय को जारी कारण बताओ नोटिस पर उचित निर्णय लेना एजेंंडा था।
समिति ने कहा कि भले ही प्रोफेसर का अनुबंध 07 अगस्त, 2021 को समाप्त हो गया, तत्कालीन कार्यकारी समिति ने अगले आदेश तक उनकी सेवाएं जारी रखने का फैसला किया था।
तदनुसार, यह निर्णय लिया गया: “वर्तमान कार्यकारी समिति ने निर्णय लिया है कि प्रोफेसर गीता ओबेरॉय 30-06-2023 तक सेवा में बनी रहेंगी, इससे आगे नहीं। यह भी तय किया गया है कि वह 31-07-2023 तक अपना अपने आधिकारिक आवास में रह सकती हैं।
प्रोफेसर ने पहले 2021 में कारण बताओ नोटिस का अंतरिम और विस्तृत जवाब दिया था। उन्होंने व्यक्तिगत सुनवाई की मांग के लिए कार्यकारी समिति को एक अभ्यावेदन भी लिखा था।
प्रोफेसर की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने कहा कि भले ही नियुक्ति का नाम संविदात्मक था, तथापि यह नियमित नियुक्ति के समान थी क्योंकि यह प्रोफेसर के पद के लिए रिक्ति के संबंध में एक विज्ञापन के अनुसार की गई थी, उसके बाद एक साक्षात्कार हुआ।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के आरोपों को किसी भी तरह से "गंभीर कदाचार" नहीं माना जा सकता।
दूसरी ओर, एएसजी बलबीर सिंह ने प्रस्तुत किया कि प्रोफेसर एक संविदा कर्मचारी हैं और चूंकि सेवा का अंतिम अनुबंध 07 अगस्त, 2021 को समाप्त हो गया था, इसलिए उनके पास कोई स्थायी अनुबंध नहीं था।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि कार्यकारी समिति का प्रस्ताव जिसमें कहा गया है कि कारण बताओ नोटिस पर उचित निर्णय जारी होने तक रोजगार जारी रखा जाना चाहिए, जब सेवा का अनुबंध अस्तित्व में था तब पारित किया गया था। उन्होंने कहा कि अनुबंध की समाप्ति के कारण प्रस्ताव पर प्रोफेसर की निर्भरता की कोई प्रासंगिकता नहीं है।
जस्टिस सिंह ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि एक बार प्रोफेसर की सेवा का अनुबंध 07 अगस्त, 2021 को समाप्त हो गया और इसे आगे जारी नहीं रखा गया, तो उन्हें उक्त अनुबंध के नियमों और शर्तों पर भरोसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
अदालत ने कहा,
“तदनुसार, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की कार्यकारी समिति के दिनांक 13.05.2023 के निर्णय में याचिकाकर्ता की सेवाओं को केवल 30.06.2023 तक जारी रखने का प्रस्ताव किया गया है, इससे आगे नहीं, इसमें कोई गलती नहीं। 13.05.2023 यानी, विवादित प्रस्ताव पारित होने की तारीख पर याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच सेवा का कोई अनुबंध नहीं था।"
इस तर्क को खारिज करते हुए कि प्रोफेसर की नियुक्ति एक नियमित नियुक्ति के समान है, अदालत ने कहा कि उनकी बर्खास्तगी न तो कलंकपूर्ण थी और न ही प्रतिशोधात्मक थी क्योंकि यह सेवा के अनुबंध की अवधि समाप्त होने के कारण की गई।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर, एडवोकेट गौरी पुरी, अदिति गुप्ता और पारस नाथ सिंह पेश हुए।
केस टाइटल: डॉ. गीता ओबेरॉय बनाम राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी
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