बालिग और नाबालिग दंगा पीड़ितों के मुआवजे में भेदभाव के विरुद्ध याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का सरकार से जवाब तलब
दिल्ली हाईकोर्ट की एक एकल पीठ ने दंगा पीड़ितों के मुआवजे की भेदभावपूर्ण योजना को लेकर दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है। इस योजना के तहत बालिग और नाबालिग दंगा पीड़ितों के परिजनों को दी जाने वाली अलग-अलग मुआवजा राशि के निर्णय को भेदभावपूर्ण बताया गया है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह की एकल पीठ ने एक नाबालिग पीड़ित के पिता राम सुगारथ, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता बृंदा करात एवं अन्य की ओर से दायर याचिका पर सीलमपुर और यमुना विहार के सब - डिविजनल मजिस्ट्रेट को नोटिस भी जारी किये। दंगा पीड़ितों की सहायता योजना के तहत दंगे में मारे गये नाबालिगों के परिजनों को पांच लाख रुपये और वयस्कों के परिजनों को 10 लाख रुपये दिये जाने के निर्णय को याचिका में चुनौती दी गयी है।
मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अप्रैल की तारीख मुकर्रर की गयी है।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के सबसे कम आयु के पीड़ितों में से एक है। भेदभावपूर्ण मुआवजा योजना मनमाना, अतार्किक और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है तथा युवा की मौत के महत्व को पहचानने में विफलता है, क्योंकि जिन नाबालिग दंगा पीड़ितों के लिए याचिका के माध्यम से संघर्ष किया जा रहा है, वे 'उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षाएं' और परिवार की मासिक आय का जरिया थे।
यह दलील दी गयी,
"किशोर-बालक के कामकाजी जीवन की अवधि और वयस्क की कमाई के रूप में उसकी अर्जित संचयी आय निश्चित तौर पर वयस्क मृतक के बराबर (वास्तव में अधिक) होगी। दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने अपने बुढ़ापे में सहारा देने वाले बेटों को खोया है।"
याचिकाकर्ताओं ने नाबालिग मृतकों के लिए निर्धारित मुआवजा राशि पांच लाख रुपये के अलावा पांच लाख रुपये की अतिरिक्त राशि दिलाये जाने की मांग की है।
याचिका एडवोकेट रागिनी नागपाल, अभय चित्रवंशी, उत्सव मुखर्जी की ओर से दायर की गयी थी और एडवोकेट करुणा नंदी ने मामले की पैरवी की।