दिल्ली हाईकोर्ट ने शिवसेना पार्टी के चुनाव चिह्न के खिलाफ चुनाव आयोग के आदेश पर उद्धव ठाकरे की अपील पर आदेश सुरक्षित रखा

Update: 2022-12-15 06:28 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की उस अपील पर फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी। एकल न्यायाधीश की पीठ ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के उस फैसले के खिलाफ उद्धव की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें शिवसेना के पार्टी चिन्ह 'धनुष और तीर' को फ्रीज कर दिया था।

ईसीआई ने 8 अक्टूबर को ठाकरे और एकनाथ शिंदे के गुट दोनों को "शिवसेना" नाम या चुनाव चिह्न "धनुष और तीर" का उपयोग नहीं करने का निर्देश दिया, जब तक कि आधिकारिक मान्यता के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी दावों का अंतिम रूप से फैसला नहीं हो जाता। हाल ही में हुए अंधेरी ईस्ट उपचुनाव के लिए पार्टी गुटों को अलग-अलग सिंबल आवंटित किए गए थे।

चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि मामले में उचित आदेश पारित किया जाएगा।

ठाकरे की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने पहले कहा कि अपीलकर्ता मुख्य रूप से एकल न्यायाधीश की टिप्पणी से व्यथित है जिसमें उसने कहा कि ईसीआई के समक्ष "विवाद याचिका" की सुनवाई योग्य होने के संबंध में प्रारंभिक आपत्ति की जांच आयोग द्वारा अपने गुण-दोष के आधार पर की जाएगी।

सिब्बल ने कहा कि एकल पीठ की टिप्पणी आयोग के लिए बाध्यकारी नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा,

"अदालत यह नहीं कह सकती कि मैंने कहां राहत मांगी कि अंतिम फैसला सुनाते समय इसकी अपनी योग्यता के आधार पर जांच की जाएगी।"

सिब्बल ने अदालत को अवगत कराया कि चूंकि ईसीआई के समक्ष कार्यवाही पर रोक सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई, कार्यवाही चल रही है और 10 जनवरी, 2023 को अगली सुनवाई होगी।

उन्होंने आगे कहा कि चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश के अनुसार, फ्रीजिंग आदेश पारित करने से पहले पार्टी को सुना जाना महत्वपूर्ण है।

सिब्बल ने कहा,

"आयोग के इतिहास में कभी भी पार्टी को सुने बिना फ्रीज करने का आदेश पारित नहीं किया गया। ऐसा पहली बार हुआ है।"

जस्टिस संजीव नरूला द्वारा 15 नवंबर को पारित आदेश के बारे में अपील में ठाकरे ने कहा कि गलत है और इसे रद्द किया जा सकता है।

जस्टिस नरूला ने याचिका खारिज करते हुए ईसीआई को दोनों पक्षों और जनता के हित को ध्यान में रखते हुए लंबित विवाद को जल्द से जल्द निपटाने का निर्देश दिया।

अदालत का विचार था कि ईसीआई ने उपचुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के कारण चुनाव-चिह्न के आवंटन की तात्कालिकता पर ध्यान दिया और फ्रीजिंग के निर्देश दिए।

अदालत ने देखा,

"इसलिए अदालत को इस तरह के दृष्टिकोण को लेकर ईसीआई की ओर से कोई प्रक्रियात्मक उल्लंघन नहीं मिला। बार-बार ईसीआई के समक्ष आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए समय लेने वाले याचिकाकर्ता अब वापस नहीं आ सकता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगा सकता है और ईसीआई की आलोचना कर सकता है।"

केस टाइटल: उद्धव ठाकरे बनाम भारत का चुनाव आयोग और अन्य

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