दिल्ली हाईकोर्ट ने नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली फिल्म 'द व्हाइट टाइगर' पर रोक लगाने से इंकार कर दिया

Update: 2021-01-22 05:42 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली फिल्म 'द व्हाइट टाइगर' पर स्टे लगाने से इंकार कर दिया है। दरअसल, फिल्म के रिलीज से एक दिन पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने हॉलीवुड निर्माता जॉन हार्ट जूनियर द्वारा दायर एक तत्काल याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका के तहत कथित कॉपीराइट उल्लंघन के आधार पर इसकी स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

शाम 7 बजे शुरू हुई तत्काल वर्चुअल सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की एकल पीठ ने कहा कि,

"अरविंद अडिगा के बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यास 'द व्हाइट टाइगर' के आधार पर प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार अभिनीत स्टार की ओटीटी स्ट्रीमिंग के खिलाफ निषेधाज्ञा के अंतिम मिनट के अनुदान को सही ठहराने के लिए कोई भी प्राइमेरी सामग्री नहीं दिखाई गई है।"

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि,

"रिलीज के एक दिन पहले कोर्ट के पास आने वाले अभियोगी को न्यायोचित ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है। यह तय हो गया है कि कोई भी पक्ष अंतिम समय पर अदालत का दरवाजा खटखटाए, सिनेमैटोग्राफिक फिल्म की रिलीज के खिलाफ अंतर-सरकारी अप्रत्यक्षता की मांग करता है, तो बाते दें कि वह इस तरह के किसी भी राहत से वंचित है।"

हालांकि, प्रतिवादियों को फिल्म से होने वाली कमाई का विस्तृत ब्यौरा रखने के लिए निर्देशित किया जाता है, ताकि बाद में अगर वादी सफल हो जाए तो उनके लिए उचित मुआवजे का निर्धारण किया जा सके।

पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि,

"एक फिल्म की रिलीज़ होने से रोकने पर इसका उनपर बहुत गंभीर प्रभाव है - जिन्होंने इसमें काम किया है, जैसे- अभिनेता, निर्माता इत्यादि। आपके लिए यह आपके सपने की तरह हो सकता है, लेकिन दूसरी ओर इसका गंभीर वित्तीय प्रभाव पड़ सकता हैं।"

न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि,

"विभिन्न हितधारकों के पर्याप्त वित्तीय हित दांव पर है और यह प्रथम दृष्टया, हार्ट एक विज्ञापन-अंतरिम राहत देने के मामले में फिट होने में विफल रहा था क्योंकि 1.5 साल पहले की बात है की कार्रवाई वजह से उत्पन्न हुआ था। हार्ट ने अनुचित कारणों से फिल्म के रिलीज होने से 24 घंटे पहले तक इंतजार किया, ताकि फिल्म के रिलीज पर अंतरिम रोक लगाने के लिए अदालत में कथित कॉपीराइट उल्लंघन का मुकदमा चलाया जा सके।"

अरविंद अडिगा के मैन बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यास पर आधारित यह फिल्म भारत में 22 जनवरी को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई।

कोर्ट ने यह भी पाया कि हार्ट ने मामले के सभी प्रासंगिक और आवश्यक दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर नहीं लाया था, जिसमें प्रतिवादियों द्वारा उनके द्वारा पेश किए गए नोटिसों के जवाब भी शामिल थे। इसके साथ ही प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए सीनियर वकील संदीप सेठी ने दावा किया कि प्रथम दृष्टया यह है कि यह प्रासंगिक तथ्यों के दमन के रूप में था।

शिकायतकर्ता के वकील कपिल सांखला ने हार्ट के लिए केवल 24 घंटे की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। इस दौरान उन्होंने सभी संबंधित दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रख दिया। हालांकि, दृष्टिबाधित न्यायमूर्ति हरि शंकर ने यह कहते हुए प्रार्थना से इनकार कर दिया कि वह 24 मिनट तक भी वादी की रक्षा नहीं करेंगे।

जॉन हार्ट ने कॉपीराइट का दावा किया और कहा कि अमेरिका का निवासी होने के नाते Covid -19 के चलते अदालत का दरवाजा खटखटाने का सही मौका नहीं मिल था।

हालांकि जस्टिस शंकर ने केवल यह कहते हुए जवाब दिया,

"Covid -19 को हर चीज के लिए दोष न दें।" और इस बात पर प्रकाश डाला गया कि वादी को अपने मामले और संबंधित दस्तावेजों को प्राप्त करने के लिए 1.5 साल का समय था, लेकिन मांगे गए उपाय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए इंतजार किया था।

एडवोक्ट सेठी द्वारा प्रस्तुत केस के नियम और नेटफ्लिक्स के वकील द्वारा पूरक के रूप में न्यायाधीश ने कानूनों पर भरोसा करते हुए कहा कि एक सिनेमैटोग्राफ फिल्म की रिलीज पर किसी के द्वारा अंतिम क्षणों में अधिकारों के उल्लंघन का दावा करके रोक लगाने के आवेदन की वजह से नहीं रोका जा सकता है।

कोर्ट ने सवाल किया कि अंतिम घंटे में क्यों सुना जाना चाहिए? हार्ट ने कहा कि समझ यह थी कि फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज़ की जाएगी न कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर।

एडवोकेट सांखला ने दावा किया कि उन्हें अरविंद अडिगा द्वारा लिखित उपन्यास से बाहर का फिल्म बनाने का अधिकार है।

आगे कहा कि,

"फिल्म में मेरा अधिकार और अनुकूलन निरपेक्ष है। उनके लिए यह केवल एक व्यावसायिक उद्यम है, लेकिन मेरे लिए यह एक भव्य सपना है। मैंने जिस तरह से इस फिल्म को बनाया है मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। जब मैंने अधिकार खरीदे तो यह दूसरा सबसे ज्यादा बिकने वाला मैन बुकर पुरस्कार विजेता था।"

इस पर कोर्ट ने यह कहते हुए जवाब दिया कि,

"केवल यह कहते हुए कि यदि यह फिल्म रिलीज़ हुई तो आपके सपने चकनाचूर हो जाएंगे, फिल्म की रिलीज़ पर निषेधाज्ञा देने के लिए कोई आधार नहीं है।"

सीनियर एडवोकेट संदीप सेठी से सहमति जताते हुए कोर्ट ने दोहराया कि,

"एक फिल्म की रिलीज़ को रोकना उन लोगों पर बहुत गंभीर प्रभाव है जिन्होंने इसमें काम किया है, जैसे अभिनेता, निर्माता इत्यादि। आपके लिए यह आपके सपने के बारे में है, लेकिन दूसरी ओर इसका गंभीर वित्तीय प्रभाव पड़ सकता है।"

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