तिहाड़ जेल में अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने वाली PIL खारिज की

Update: 2025-09-24 07:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आतंकवाद से संबंधित मामलों में मृत अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रों को केंद्रीय तिहाड़ जेल परिसर से हटाने की मांग की गई थी।

याचिका में यह भी अनुरोध किया गया कि उनके शवों को किसी गुप्त स्थान पर विधिक रूप से स्थानांतरित किया जाए ताकि आतंकवाद का महिमामंडन और जेल परिसर के दुरुपयोग को रोका जा सके।

चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने का निर्देश दिया साथ ही इसे नए सिरे से दायर करने की स्वतंत्रता दी।

अदालत ने कहा कि इस मामले में संवेदनशीलता के दोनों पहलुओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। किसी की अंतिम संस्कार की गरिमा का सम्मान होना चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि इन कब्रों को हटाने के लिए अब 12 साल बाद चुनौती देना कठिन है। यदि उद्देश्य आतंकवाद के महिमामंडन को रोकना है तो याचिकाकर्ता को जेल प्रशासन से निर्देश लेने का प्रयास करना चाहिए। याचिकाकर्ता ने इसके बाद अपनी याचिका वापस लेने और नए सिरे से दायर करने का आश्वासन दिया।

याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ द्वारा दाखिल की गई, जिसमें तर्क दिया गया कि राज्य-नियंत्रित जेल परिसर में इन कब्रों का निर्माण और अस्तित्व अवैध, असंवैधानिक और सार्वजनिक हित के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता का कहना था कि यह दिल्ली जेल नियम, 2018 का उल्लंघन है, जो मृतकों के अंतिम संस्कार को इस प्रकार सुनिश्चित करने के लिए कहता है कि आतंकवाद का महिमामंडन न हो और जेल अनुशासन एवं सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे।

अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि जेल नियम का उनकी व्याख्या कैसे की गई। चीफ जस्टिस ने कहा कि नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि किसी शव को जेल के बाहर ले जाना हो तो वह गंभीरता और गरिमा के साथ किया जाए। यह नहीं कहता कि हर शव को बाहर ले जाना आवश्यक है।

अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि तिहाड़ जेल एक सार्वजनिक स्थान नहीं है बल्कि राज्य का एक नियंत्रित स्थल है और यहां स्थित कब्र किसी अपराध का कारण नहीं बन सकती।

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