JNU के क्रॉस-वोटिंग नियम पर मुहर: हाईकोर्ट ने आंतरिक शिकायत समिति चुनाव में हस्तक्षेप से किया इनकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) का निर्णय बरकरार रखा, जिसके तहत यौन उत्पीड़न मामलों से संबंधित आंतरिक शिकायत समिति (IC) के स्टूडेंट प्रतिनिधियों के चुनाव में स्टूडेंट्स को सभी निर्वाचन क्षेत्रों स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध स्टूडेंट मतदान करने की अनुमति दी गई थी।
जस्टिस मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि चुनावी विवादों में न्यायिक हस्तक्षेप केवल तभी वारंट होता है, जब अवैधता या अनुचितता का स्पष्ट सुसंगत और विश्वसनीय प्रमाण हो। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि बिना किसी वास्तविक पूर्वाग्रह को सिद्ध किए निर्णयों या कथित शिकायतों से मात्र असंतोष के आधार पर चुनावों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने ग्रेजुएट और रिसर्च स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें 1 नवंबर, 2024 को जारी IC चुनाव 2024-25 के सामान्य निर्देशों के खंड 5(j) को चुनौती दी गई। इस खंड के तहत यूनिवर्सिटी ने प्रत्येक स्टूडेंट को तीनों निर्वाचन क्षेत्रों ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और रिसर्च स्टूडेंट में एक-एक वोट डालने की अनुमति दी ताकि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत गठित IC के लिए स्टूडेंट प्रतिनिधि चुने जा सकें।
कोर्ट ने इस निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि स्टूडेंट्स को निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान की अनुमति देने के निर्णय ने सभी श्रेणियों में भागीदारी का विस्तार किया समावेशिता बढ़ाई प्रक्रिया के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत किया और तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या को बराबर कर दिया।
कोर्ट ने आगे कहा कि क्रॉस कॉन्स्टिट्यूएंसी वोटिंग ने प्रतिनिधित्व के लिए समग्र पैन-यूनिवर्सिटी दृष्टिकोण सुनिश्चित किया। खासकर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि स्टूडेंट प्रतिनिधि IC के उस हिस्से में होते हैं, जहां शिकायत में कोई स्टूडेंट शामिल होता है भले ही वह स्टूडेंट स्नातक स्नातकोत्तर या शोध स्टूडेंट हो।
याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज करते हुए कि यह खेल के नियमों को बदलने के समान है, जज ने कहा कि बाद में जारी किए गए सामान्य निर्देशों ने केवल मतदान आधार को बढ़ाया है। स्टूडेंट्स को केवल अपने ही निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के लिए मतदान करने तक सीमित रखने के बजाय उन्हें तीनों निर्वाचन क्षेत्रों के स्टूडेंट प्रतिनिधियों के लिए मतदान करने का अवसर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि मतदान आधार में इस वृद्धि को मनमाना नहीं माना जा सकता, क्योंकि इससे सभी निर्वाचन क्षेत्रों में योग्य मतदाताओं की संख्या समान हो गई।
जस्टिस पुष्करणा ने यह भी जोड़ा कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में विफल रहे कि सामान्य निर्देशों को जारी करके नियम में संशोधन करने का यूनिवर्सिटी का कार्य कैसे अनुचित था या इसने समान अवसर (Level Playing Field) को कैसे बाधित किया।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि न्यायपालिका को चुनाव में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि यह बिल्कुल आवश्यक न हो। इस मामले में ऐसी कोई आवश्यकता उत्पन्न नहीं हुई, क्योंकि चुनाव पारदर्शी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हुए।