"आर्टिकल 227 इस तरह की याचिकाओं के लिए नहीं बना है": दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सिविल सूट के शीघ्र निपटान की मांग करने वाले पक्षकार पर 11 हजार का जुर्माना लगाया
दिल्ली हाईकोर्ट ने दीवानी वाद पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए ट्रायल कोर्ट को निर्देश देने की मांग करने वाले पक्षकार पर 11,000 रूपये का जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिका अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि याचिका मामले से निपटने के लिए निचली अदालत पर दबाव बनाने के लिए हाईकोर्ट का उपयोग करने की कोशिश करने का एक साधन है।
कोर्ट ने कहा,
"आर्टिकल 227 इस तरह की याचिकाओं के लिए नहीं बना है।"
तदनुसार, अदालत ने 11,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर दी। 11,000 का भुगतान दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति (डीएचसीएलएससी) के पक्ष में एक क्रॉस चेक के माध्यम से किया जाना है।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 19 नवंबर, 2020, 9 दिसंबर, 2020, 14 जनवरी, 2021, 30 मार्च, 2021, 7 सितंबर, 2021, 29 सितंबर, 2021, 18 नवंबर, 2021 और 31 जनवरी, 2022 को मामले की सुनवाई की थी। अगली सुनवाई के लिए यह मामला 25 अप्रैल, 2022 को सूचीबद्ध किया गया।
अदालत ने शुरू में कहा,
"यह अदालत पूरी तरह से भ्रमित है कि याचिकाकर्ता इस मामले में निचली अदालत द्वारा विस्थापित किए गए से अधिक तेजी से इस मामले से निपटने के लिए विद्वान निचली अदालत को किसी भी निर्देश की कल्पना कैसे कर सकते हैं।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि महामारी के बाद सामान्य अदालती कार्य फिर से शुरू होने के बाद निचली अदालतों पर बहुत अधिक बोझ पड़ा है। हाईकोर्ट उन पर ओर बोझ डालना नहीं चाहता।
अदालत ने कहा,
"यह याचिका अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह याचिकाकर्ताओं के मामले से निपटने के लिए निचली अदालत पर दबाव बनाने के लिए हाईकोर्ट का उपयोग करने का साधन है।"
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
शीर्षक: राजेंद्र कुमार सेठी और अन्य बनाम एम/एस वी.जी. मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 305
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