दिल्ली हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में व्यापक षड्यंत्रों के मामले यूएपीए के तहत आरोपित व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुहैल अहमद ठोकर नामक कश्मीरी नागरिक को जमानत देने से इनकार कर दिया। अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर में आतंक गतिविधियों में शामिल होने के मामले में सुहैल को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत आरोपित किया गया था। इसके खिलाफ उसने ट्रायल कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया था, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की, जहां हाईकोर्ट ने भी जमानत याचिका पर ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने पाया कि जांच के दरमियान कई सबूत प्राप्त किए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि आरोपी की बड़ी साजिश और उग्रवाद और आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों में महत्वपूर्ण भागीदारी थी।
कोर्ट ने आगे कहा कि एनआईए की ओर से दायर आरोपपत्र के अनुसार, आरोपी ने यूएपीए की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) से जुड़े दो आतंकवादियों के लिए आश्रय की व्यवस्था करने का प्रयास किया था।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनीश दयाल की पीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा,
“यूएपीए अधिनियम के प्रावधानों पर उचित विचार, विषय आरोप-पत्र में संलग्न सामग्री, सामूहिक साक्ष्य के मूल्यांकन, साथ ही उनके संभावित मूल्य का सतही विश्लेषण करने के बाद हमारे सुविचारित दृष्टिकोण में प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए उचित आधार मौजूद हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप सही हैं। नतीजतन, यूएपीए अधिनियम की धारा 43 डी (5) की शर्तें संतुष्ट हैं।"
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि, कश्मीर घाटी में एक बड़ी साजिश रचने के संबंध में खुफिया जानकारी मिलने पर, एनआईए ने यूएपीए और आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसके बाद अपीलकर्ता-अभियुक्त को 20 अक्टूबर 2021 को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके और सह-अभियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी और यूएपीए के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।
एनआईए द्वारा दायर आरोपपत्र से पता चला है कि साजिश लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (एचएम), अल-बद्र और पाकिस्तान स्थित अन्य संस्थाओं सहित विभिन्न आतंकवादी संगठनों के उच्च पदस्थ नेताओं द्वारा रची गई थी।
आरोप पत्र में आगे कहा कि गया कि, जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ भारत के अन्य क्षेत्रों में आतंकवाद के कृत्यों को फिर से शुरू करने के उद्देश्य से, अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद साजिश रची गई थी।
राज्य ने दावा किया कि आतंकवादी समूह, पाकिस्तान स्थित अपने मददगारों और नेताओं के साथ मिलकर, भारत के भीतर अपने ओवर-ग्राउंड कार्यकर्ताओं के साथ, अतिसंवेदनशील स्थानीय युवाओं को प्रभावित करने और कट्टरपंथी बनाने में शामिल थे, जिसका उद्देश्य उन्हें आतंकवादी कृत्य में भाग लेने के लिए भर्ती करना और प्रशिक्षित करना था। इसने आगे आरोप लगाया कि पूरा ऑपरेशन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, यानी "इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस" (आईएसआई) के मार्गदर्शन और समर्थन के तहत आयोजित किया गया था।
एनआईए द्वारा दायर आरोप पत्र में कहा गया है कि अपीलकर्ता ने अपने परिचितों की सहायता से अपने निवास स्थान के भीतर आतंकवादी संगठनों के सदस्यों और उनके सहयोगियों को शरण प्रदान करने में सक्रिय भूमिका निभाई।
अपीलकर्ता द्वारा दायर जमानत याचिका को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, विशेष न्यायाधीश (एनआईए), पटियाला हाउस कोर्ट ने यह देखने के बाद खारिज कर दिया कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने में सक्षम था कि मामले में लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत थे।
जमानत अर्जी खारिज होने के खिलाफ दायर अपील में, राज्य ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि, यूएपीए की धारा 43डी (5) के मद्देनजर, जमानत अर्जी पर फैसला करने के चरण में, अदालत को केवल यह देखना होगा कि क्या यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप प्रथम दृष्टया सत्य थे। राज्य ने दावा किया कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप उसे पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठनों के निर्देशन में काम करने वाले आतंकवादियों के एक सामूहिक समूह के अभिन्न सदस्य के रूप में चित्रित करते हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य ने तर्क दिया, अपीलकर्ता सक्रिय रूप से कश्मीर घाटी में स्थित आतंकवादियों को समन्वय और रसद सहायता प्रदान करके आतंकवादी गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने में लगा हुआ है।
हाईकोर्ट ने कहा कि "बड़ी साजिश" मामले के संबंध में जांच एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों में भौतिक और वर्चुअल दोनों क्षेत्रों के साक्ष्य शामिल हैं। अदालत ने आगे कहा कि जब्त किए गए मोबाइल फोन से प्राप्त डिजिटल डेटा की विश्लेषण रिपोर्ट में मृत आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों से संबंधित चित्रों की मौजूदगी का पता चला है, और अपीलकर्ता ने इन चित्रों को व्यक्तियों के साथ साझा करने की मंशा से स्वीकार किया है।
अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता ने अपने प्रकटीकरण बयान में पुष्टि की थी कि उसने अपने गृहनगर में आवास की व्यवस्था करने में आतंकवादियों की सहायता की थी। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष के गवाह ने अपीलकर्ता के कई विद्रोहियों के साथ जुड़ाव के बारे में बात की थी और विद्रोहियों के साथ उसके जुड़ाव के साथ-साथ अपने आवास पर दो आतंकवादियों को शरण देने में उसकी भूमिका की पुष्टि की थी।
अदालत ने अरूप भुइयां बनाम असम राज्य और अन्य, 2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 338 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ के हालिया फैसले का हवाला दिया, जहां शीर्ष अदालत ने यूएपीए की धारा 10 (ए) (आई) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है और यह माना गया है कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र अधिनियम के तहत अपराध है।
इस प्रकार पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि, प्रथम दृष्टया यह मानने के लिए उचित आधार मौजूद हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप सही थे। इस प्रकार अदालत ने अपील खारिज कर दी।
केस टाइटल: सुहैल अहमद ठोकर बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी